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४३८. पत्र : भवानीदयालको

आश्रम
साबरमती
बुधवार, भाद्रपद शुक्ल ८ [१५ सितम्बर, १९२६][१]

भाई भवानीदयालजी,

आपका पत्र मिला है। मेरा उत्तर निम्नलिखित है :

(१) ना जी।[२]
(२) जोहानिसबर्गसे १३ मील दूर और बगैर लम्बे पट्टेसे जमीन देने की बात थी। उस जगहका स्वीकार करनेसे मैंने भारतवासियोंको रूक लिये थे। कारण स्पष्ट है।
(३) म्युनिसिपालिटीकी औरसे मुझे एक कोड़ी भी नहीं मिली थी। परंतु म्युनिसिपालिटी जिन केसोंमें हार गई थी उसमें खर्चा म्युनिसिपालिटीको देना पड़ा था। भारतवासीमेंसे जो कुछ मिला था वह करीब सब जाहेर काममें दिया गया था।
(४) दोनों एसोसिएशन आखिर तक मौजूद थे और एक दुसरेसे स्वतन्त्र थे।
(५) जिस तरह किसीकी वंदना बलात्कारसे करना अधर्म है और सारा जगतकी वंदना स्वेच्छया करना धर्म है, इसी तरह उंगलियोंके लिये समझा जाय। हिंदुस्तानमें और अन्य देशोंमें केदीओंके सिवाय और लोगोंसे भी उंगलियां ली जाती हैं। महादेवजीने नग्न-नृत्य किया था।
(६) फोटोका भी हमारे लोगोंके तरफसे विरोध किया गया था, और वह उचित था। मेरी दृष्टि फोटोकी बनिस्बत उंगलियां देना ज्यादह अच्छा है और शास्त्रीय है।
(७) वेस्टेड राइट्सके[३] संबंध में आपने ठीक अर्थ निकाला है।
(८) आपके पुस्तककी मैंने उपेक्षा नहीं की है, परंतु मैंने पूरी पढ़ ली नहीं है। उसमें बहुतसी गलतियां हैं। मुझको···· [४]गया है। उस बारेमें जिक्र करना अनुचित समझकर मैं शांत रहा हूं। मुझको स्मरण तो ऐसा है कि आपने भी कुछ गलतियांका स्वीकार किया था, और पश्चात्तापका पत्र भी मुझको लिखा था।

आपका,
मोहनदास गांधी

मूल पत्र (एस० एन० १०९९०) की फोटो-नकलसे।

  1. यह पत्र भवानीदयालके दक्षिण आफ्रिका सम्बन्धी ९ सितम्बर, १९२६ के पत्रके उत्तरमें लिखा गया था। देखिए परिशिष्ट ५
  2. प्रश्न था: क्या गांधीजीने जोहानिसबर्ग नगरपालिकाको भारतीय वस्तियाँ दे देनेके प्रस्तावपर अपनी स्वीकृति दे दी है?
  3. मूलमें यह शब्द अंग्रेजीमें है।
  4. पत्र यहाँ कटा-फटा है