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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पुलाव भी न पकायें। यह शिष्टमण्डल तो दिसम्बरमें होनेवाले सम्मेलनका सिर्फ एक अंश-भर है। उसके सदस्यगण कुछ कर सकनेका अधिकार लेकर यहाँ नहीं आ रहे हैं। वे तो यहाँ केवल यहाँका वातावरण समझनेके लिए आ रहे हैं। दक्षिण आफ्रिका और भारतके राजनीतिज्ञोंके सामने जो कठिन समस्या है, उसका समाधान अनेक परिस्थितियोंपर निर्भर करता है। शिष्टमण्डलका आना भी उनमें से एक है। इस अवसरका हमें अच्छेसे-अच्छा उपयोग करना चाहिए। हमें ऐसी स्थिति उत्पन्न करनी चाहिए, जिससे शिष्टमण्डल समस्याके सभी पहलुओंको देख-समझ सके। दूसरे शब्दों में हमें ऐसी स्थिति उत्पन्न करनी चाहिए जिससे वे सत्य, केवल वास्तविक सत्यको, जान सकें। दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय अधिकारियोंका मामला खालिस न्यायपर आधारित है। इसलिए, इस समय जो दक्षिण आफ्रिकी राजनीतिज्ञ आ रहे हैं, उनके मौकेपर आकर स्थितिका निष्पक्ष अध्ययन करनेसे समस्याके समाधानमें मदद ही मिलेगी।

मो० क० गांधी

बॉम्बे क्रॉनिकल, १८-९-१९२६ तथा अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६९२) की फोटो-नकलसे ।

४३७. पत्र : वी० ए० सुदरम् को

आश्रम
साबरमती
१५ सितम्बर, १९२६

प्रिय सुन्दरम्,

तुम्हारा साप्ताहिक उपहार फिर मिला। तुम्हारा प्रति सप्ताह मुझे तमिलके सरल वाक्य भेजते रहनेका प्रस्ताव है तो बड़ा आकर्षक; लेकिन चूंकि मेरे पास इस समय जितना काम है उसके अलावा और कुछ करनेका मेरे पास समय नहीं है। इसलिए मुझे इस लोभका संवरण करना ही पड़ेगा।

तुम सबको सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

अंग्रेजी पत्र (जी० एन० ३१९४) की फोटो-नकलसे।