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पत्र : ऋषभदासको

अगर खान-मालिक जीत गये तो उसका कारण यह नहीं होगा कि खान मजदूरों की सन्तान बहुत हैं; बल्कि यह होगा कि खान मजदूर अपने आपको नियन्त्रणमें रखना नहीं जानते। अगर हर खान मजदूर अपनी जातिके मूलोच्छेदपर तुल जाये, वह कोई सन्तान उत्पन्न न करे तो भी मैं नहीं कह सकता कि उसकी अवस्था सुधर ही जायेगी, तब उसमें कोई महत्त्वाकांक्षा नहीं रह जायेगी और वह अपनी मजदूरीमें वृद्धि नहीं चाहेगा। जो मानव समुदाय उच्चतर जीवनको जानता ही नहीं, जो अपनेको संयमित करना नहीं चाहता और जो नागरिक दायित्वोंसे बराबर बचता है, उसके भविष्यके बारेमें कुछ भी कहना कठिन है।

हाँ, आप याद रखें कि सन्तति-निग्रहके सम्बन्धमें हम दोनों सहमत हैं। लेकिन निग्रहके उपायोंके विषयमें हम एक-दूसरेसे इतने भिन्न हैं कि निष्कर्ष भी अलग-अलग ही निकलेंगे।

हृदयसे आपका,

श्री एम० मगरिज

'फॉरले'

उटकमण्ड

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६९१) की फोटो-नकलसे।

४३३. पत्र : ऋषभदासको

आश्रम
साबरमती
भाद्र [पद] सुदी ७, १९८२, १४ सितम्बर, १९२६

चि० ऋषभदास,

तुम्हारा पत्र मिला। भाई दास्ताने जैसा कहें वैसा करना तुम्हारा धर्म है। पिताजी अपना कारोबार तुम्हारे लिए ही चला रहे होंगे। उससे हाथ खींच लेना तुम्हारा कर्त्तव्य है। मेरा यह निश्चित मत है कि यदि तुम उससे सम्बन्ध तोड़ लो तो तुम्हें पिताजीसे मदद नहीं लेनी चाहिए। तुम्हें अपनी और अपनी धर्मपत्नी दोनोंकी गुजर-बसरका रुपया खादी-संस्थासे लेना चाहिए। मित्र लोग यदि स्वयंमेव तुम्हारी कुछ आर्थिक सहायता करें तो खुशीसे ले सकते हो, वह मदद उनके द्वारा खादी संस्थाको दी गई मददके समान ही है। तुम्हारी पत्नीकी तबीयत अच्छी होगी। तुम जो कुछ काम हाथमें लो उसे निश्चिन्त भावसे करो।

द्वारा कांग्रेस खादी भण्डार
जलगाँव

गुजराती प्रति (एस० एन० १२२८०) की फोटो-नकलसे।