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४२५. पत्र : लाला लाजपतरायको

आश्रम
साबरमती
११ सितम्बर, १९२६

प्रिय लालाजी,

देख रहा हूँ कि आपने अपने पर्यटनमें भी मुझे भुलाया नहीं, क्योंकि आप 'गीता' का एक नन्हा-सा संस्करण तथा चार अन्य रत्न भी मुझे भेजे हैं। आपके हृदयको जिस भावने उपहारके लिए प्रेरित किया उस भाव तथा आपकी पसन्दगीके लिए मैं आपका आभारी हूँ। आशा है कि आप राजनीतिके राजमार्गपर अपनी यात्राओंके दौरान इस एक बेचारे इन्सान और उसकी खादीके लिए हमेशा प्रेम बनाये रहेंगे और याद रखेंगे कि वह हमेशा आपके हृदय द्वारपर खड़ा हुआ कुण्डी खटखटा रहा है। आशा है आपके हृदय-द्वार मेरे लिए खुले रहेंगे।

आशा करता हूँ कि जलवायु परिवर्तनसे आपको लाभ हुआ होगा।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन १९६९०) की फोटो-नकलसे।

४२६. पत्र : बनारसीदास चतुर्वेदीको

आश्रम,
साबरमती
शनिवार, भाद्रपद शुक्ल ४ [११ सितम्बर, १९२६][१]

भाई बनारसीदासजी,

यह मेरा सन्देश :

फिजीमें भारतवासी शराबमें ज्यादेतर डूबे रहे। सुनकर मुझको बड़ा खेद होता है। ईश्वर उनको इस बदीसे बचा ले।

आपका,
मोहनदास गांधी

श्री बनारसीदास चतुर्वेदी
फीरोजाबाद, (सं० प्रा०)

मूल पत्र (जी० एन० २५६५) की फोटो-नकलसे।

  1. डाककी मुहरसे।