तो बनाया नहीं जा सकता। आपके लिए क्या करना है इस सबके बारेमें में स्वामीके साथ बात कर लूंगा और अन्तमें वह जो कहेगा वही करूँगा। इस समय तो यहाँ हवा काफी ठण्डी है। बादल घिरे हुए हैं और नदीमें खूब पानी है।
तनसुखके पत्रका मुझपर कुछ असर नहीं हुआ। उस पत्रमें व्यक्त किये गये विचार अधकचरे हैं। पर बच्चोंको ऐसे विचार भी करनेकी स्वतन्त्रता अवश्य होनी चाहिए। समय पाकर इन भूलोंमें से कितनी तो अपने-आप सुधर जाती हैं।
स्वावलम्बन पाठशाला
चिंचवड
गुजराती प्रति (एस० एन० १२२७७) की फोटो-नकलसे।
४२४. पत्र: परमानन्द सैम्युअल्स लालको
आश्रम
साबरमती
११ सितम्बर, १९२६
आपका पत्र मिला और 'एवर इन्क्रीजिंग फेथ' नामक पुस्तक भी। दोनोंके लिए धन्यवाद। मेरे पास अनेक परिचित और अपरिचित कृपालु मित्रों द्वारा भेंटके रूपमें भेजी गई इतनी अधिक चीजें आया करती हैं कि उनपर पूरी तौरसे ध्यान देना भी असम्भव हो गया है। जो साहित्य मेरे पास आता है, उसे पढ़नेके लिए मुझे एक क्षण भी नहीं मिल पाता। आपके द्वारा भेजी गई पुस्तक पढ़ पाऊँगा सो ईश्वर ही जानता है। मेरी कठिनाई यह है कि पढ़नेकी जितनी उत्कट इच्छा पहले रहा करती थी अब नहीं रह गई है। अब मनमें विचार और चिन्तन और प्रार्थना करनेकी ओर ईश्वर मुझे जो बुद्धि देता है उसके अनुसार काम करनेकी इच्छा है। दूसरोंके अनुभव यद्यपि मूल्यवान होते हैं पर वे आज मेरे काम नहीं आ सकते, क्योंकि मेरी धारणा है कि परमात्माने मेरा कार्य निश्चित कर दिया है। और उसीको करते रहने के अतिरिक्त मेरे सामने और कोई विकल्प नहीं रह गया है।
हृदयसे आपका,
७, पंचमहल रोड
अंग्रेजी प्रति (एस एन० १९६८९) की माइक्रोफिल्मसे।