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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मौजूद हैं उनसे ही यह पता चला है कि औसत आमदनी कितनी हो सकती है। फी घंटा कितना सूत काता जा सकता है, इसकी जानकारी तो कतैये ही दे सकते और इन कतैयोंमें से अधिकांशको समयका कोई ठीक अन्दाज नहीं रहता और वे अपने फाजिल समयमें ही चरखेको हाथ लगाते हैं। इसलिए जितने प्राप्त हो सकते थे उतने ही आँकड़े दिये गये हैं। परन्तु ज्यों-ज्यों समय बीतता जायेगा, ज्यादा सही जानकारी और तफसील मिलने लगेगी।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत वी० एन० आप्टे

खादी कार्यालय
मालपुर

डोंडाइच

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६८८) की माइक्रोफिल्मसे।

४२३. पत्र : द० बा० कालेलकरको

आश्रम
साबरमती
शुक्रवार, भाद्रपद सुदी ३, १० सितम्बर, १९२६

भाईश्री ५ काका,

आपने अपनी तबीयतके विषयमें जो पत्र स्वामीको लिखा था उससे तो मैं तनिक भी नहीं घबराया था। पर आपने मुझे जो पत्र लिखा है उसे पढ़कर मैं सचमुच घबरा गया। स्वामीके साथ मैं बात जरूर करूंगा। परन्तु जैसे जच्चाके पास बहुत-सी दाइयाँ इकट्ठी हो जानेसे प्रसव बिगड़ जाता है वैसे ही जब कोई व्यक्ति अत्यन्त प्रेम और समझदारीके साथ अपने मित्रका मार्गदर्शन कर रहा हो वहाँ दूसरे मित्रों- को दखल देना उचित नहीं। यदि उन्हें कुछ कहना हो तो वे अपनी बात कहकर चुप रहें। मेरा यही मत है। मैं मानता हूँ कि अनेक कारणोंसे आपकी तबीयतके बारेमें आपका मार्गदर्शन करनेका अधिकार मुख्य रूपसे स्वामीको ही है, और चूंकि स्वामी कुशल है इसलिए में निर्भय भी रहता हूँ। कुछ बातोंके बारेमें मतभेद हो सकता है; उनके बारेमें में साधारणतया कुछ कह देता हूँ पर आग्रह नहीं करता। जितना अपूर्ण चिकित्साशास्त्र है उतना अपूर्ण कदाचित ही कोई दूसरा शास्त्र होगा। और जहाँ बहुत-सा काम अनुमानके आधारपर ही चलता हो वहाँ किसी एक मार्ग पर जाते हुए मनुष्यके मनमें अपने आग्रहसे संशय उत्पन्न करना तो पाण्डेजीको दोनों दीनोंसे वंचित करने जैसा होगा। मसूरी इत्यादिका मुझे मोह नहीं है। हम गरीब हैं इसलिए हमें कहीं अपनी सीमा अवश्य बाँध लेनी चाहिये, ऐसा में अवश्य मानता हूँ। कहाँ और कैसे बाँधनी चाहिए, जो सबपर लागू हो सके ऐसा सामान्य नियम