पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/४४३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

४१९. पत्र : एस० एस० मोटगीको

आश्रम
साबरमती
१० सितम्बर, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। ग्रहों और नक्षत्रोंका मानव समाजपर क्या प्रभाव पड़ता है, इसका अध्ययन मैंने नहीं किया है। इसलिए मैं आपके पहले प्रश्नका उत्तर देनेमें असमर्थ हूँ।

जब कोई व्यक्ति— पुरुष हो या स्त्री— अपनी वासनाओंके वशीभूत हो तब उसे एकान्त सेवन करना चाहिए, पूर्ण मौन धारण करना चाहिए और जबतक वासनाएँ शान्त न हो जायें तबतक किसी भी प्रवृत्तिमें नहीं पड़ना चाहिए। वासनाओंके बने रहनेतक सक्रिय जीवनसे बचनेके लिए पूर्णतया निराहार रहने की सलाह दी जा सकती है।

धार्मिक पुस्तकोंके वैज्ञानिक अध्ययनका केवल एक ही मार्ग है— थोड़ा-थोड़ा पढ़ा जाये और उसे भलीभांति हृदयंगम कर लेनेके बाद ही आगे बढ़ा जाये और जो बात अपनी नैतिक बुद्धिको न जँचे उसे कदापि ईश्वरीय शब्दकी भाँति ग्रहण न किया जाये।

कितने घंटे अध्ययन किया जाये इसके बारेमें कोई पक्का नियम बनाना सम्भव नहीं है। किसीके लिए चन्द मिनट ही पर्याप्त होते हैं और किसी दूसरेके लिए कुछ घंटे। प्रत्येक व्यक्तिको अपने आप मालूम कर लेना चाहिए कि वह कितना पढ़ और हजम कर सकता है। मस्तिष्कमें तथ्यों, तर्कों और सिद्धान्तोंको भर लेना बिलकुल निरर्थक है।

हृदयसे आपका,

एस० एस० मोटगी

नया बाजार

बीजापुर

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६८४) की फोटो-नकलसे।