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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कहा था कि आपके मामलेमें कांग्रेसके लिए कोई कारगर कदम उठा सकना मुमकिन नहीं होगा। सम्भव है कि उनसे उपरोक्त बात कह देनेके पश्चात् मैंने आपको पत्र न लिखा हो। परन्तु न लिखनेका कारण दिलचस्पी अथवा शिष्टताकी कमी नहीं थी। मेरे नाम आये हुए पत्रोंमें से शायद ही कोई ऐसा होगा जिसकी प्राप्ति में सूचित न करूँ।

दूरके ढोल सुहावने होते हैं। मैं आपको इस बातका यकीन दिला देना चाहता हूँ कि कांग्रेसका अध्यक्ष भारतका 'बेताज' बादशाह नहीं है। उसके हाथ में कोई सत्ता नहीं है। आप जैसी शक्तिकी उसमें कल्पना करते हैं, वैसी शक्ति उसमें नहीं होती। मैं जानता हूँ कि जब मैं कांग्रेस अध्यक्ष था तब मेरे हाथमें भी कोई शक्ति न थी। यदि मुझे ऐसा लगता कि आपकी मदद करना मेरे लिए जरा भी मुमकिन है तो मैं बिना किसी संकोचके करता। परन्तु शक्ति मेरे पास न तब थी और न अब है।

मैं आपको यह भी बतला दूं कि आपके मामलेसे सम्बन्धित कागजात मैंने आपका पत्र पाने के पूर्व ही पढ़ लिये थे और उसके बारेमें कई सिख मित्रोंसे बातचीत भी की थी। मैंने उन भाइयोंसे कह दिया था कि महाराजा साहबकी सहायता करना सिखोंके बसकी बात भी नहीं है और अगर वे सहायता करनेकी जरा भी कोशिश करेंगे तो आपका काम बननेके बजाय बिगड़ेगा ही; साथ-ही-साथ उनके अपने आन्दोलनको[१] भी धक्का पहुँचेगा। मेरा खयाल तो अब भी यही है कि आपके मामलेको गुरुद्वारा आन्दोलनके साथ जोड़ना एक बड़ी भूल थी। और मैंने अपनी यह राय तब दी थी कि जब में सैसून अस्पतालमें रोग-शय्यापर था और सिखोंका एक प्रतिनिधि मण्डल मुझसे मुलाकात करने आया था।[२]

हृदयसे आपका,

हिज हाइनेस महाराजा साहब नाभा

"स्नोडन"

मसूरी पश्चिम

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०९९४) की फोटो-नकलसे।

  1. देखिए खण्ड २४।
  2. पत्रके सिरेपर सचिव द्वारा लिखा हुआ एक नोट इस प्रकार है: "चूँकि डाकमें भेज देनेके पश्चात् पत्रमें कुछ संशोधन किये गये हैं, इसलिए मैं पत्रकी संशोधित प्रतिलिपि भेज रहा हूँ।"