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४१७. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

आश्रम
साबरमती
१० सितम्बर, १९२६

प्रिय सतीशबाबू,

आपका पत्र मिला। आपको इस समय किन शब्दोंमें सान्त्वना दी जाये या इस अवसरपर आपसे क्या कहा जाये, सो मुझे नहीं सूझता। मैं तो यही प्रार्थना कर सकता हूँ कि आपको शान्ति मिले। शरीर या स्नायुओंपर अधिक बोझ डालकर अपने स्वास्थ्यको कदापि न बिगड़ने दीजिए। अनिलको रोजाना बुखार क्यों आ जाता है? आपका अपना स्वास्थ्य बिलकुल ठीक क्यों नहीं रहना चाहिए? यह जानकर मुझे बहुत दुःख हुआ कि हेमप्रभा देवीको आश्रमका वातावरण अनुकूल नहीं आया। यदि वे बच्चोंके साथ यहाँ बनी रहतीं तो बहुत बेहतर होता और आप अपेक्षाकृत अधिक स्वतन्त्रताका अनुभव करते। मैं जानता हूँ कि आपकी देखभाल जितनी अच्छी तरह वे कर सकती हैं उतनी अच्छी तरह और कोई नहीं कर सकता। परन्तु सभी पतियोंको इस लाचारीपर विजय पानी पड़ती है। हिन्दू पत्नियाँ इस सम्बन्धमें अन्य समाजोंकी स्त्रियोंसे कहीं अच्छी और दृढ़तर स्थितिमें हैं, क्योंकि अपनी देखभालके लिए वे दूसरोंकी मोहताज नहीं रहतीं।

आपका,
बापू

अंग्रेजी पत्र (जी० एन० १५६१) की फोटो-नकलसे।

४१८. पत्र : महाराजा नाभाको

आश्रम
साबरमती
१० सितम्बर, १९२६

प्रिय महाराजा साहब,

आपने गत वर्ष २० सितम्बरको जो पत्र[१] मुझे लिखा था उसकी नकल तथा उसके साथ मेरे पुत्रके नाम लिखा हुआ आपका पत्र भी मिला। आपका पत्र मुझे मिला था, इसका पूरा स्मरण है। मेरा खयाल है कि मैंने मौलाना मुहम्मद अलीसे

  1. इस पत्र में महाराजा नाभाने इस बातकी शिकायत की थी कि गांधीजीने उनके आवेदनपत्रको पहुँचतक लिखनेको तकलीफ गवारा न की ( एस० एन० १०९८९)।