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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अन्तिम क्षणतक वे देशका ही विचार करते रहे। उन्होंने एक आदर्शके लिए प्राण-त्याग किया और अपने आदर्शके जरिए वे आज भी जीवित है; वह आदर्श उनके बाद आज भी वर्तमान है। बंगालका मतभेद और भारतमें जो भ्रातृघाती युद्ध हो रहा है, वह उनके आदर्शको नकारता है। परन्तु मैं यह मानता हूँ कि यह बाधा आदर्शपर पहुँचनेके उस कार्य में एक क्षणिक बाधा ही है। आत्मशुद्धिके मार्गमें हमें ऊँचे शिखर चढ़ने होंगे, गहरी खाइयाँ पार करनी होंगी। आवश्यकता हुई तो खाइयों पर पुल बाँधकर और चट्टानोंको काटकर अपना मार्ग बनाना होगा। मुझे इस बातका पूरा भरोसा है कि हम इन सब कठिनाइयोंको दूर कर सकेंगे। हमें वे बड़ी महँगी पड़ रही हैं तथा और भी महँगी पड़ सकती है। परन्तु जिस मुक्तिको प्राप्त करनेके लिए श्री लोकमान्य, देशबन्धु और उनके भी अग्रगामी नेताओं ने अपना जीवन अर्पण कर दिया था, उसे प्राप्त करनेके लिए कोई भी कीमत क्यों न देनी पड़े, वह महँगी नहीं हो सकती।

असहयोगियोंकी स्थिति

एक मित्र पूछते हैं :

आज देशमें इतने दल हो गये हैं कि उनमें हमें कहाँ पैर जमाना चाहिए यही हमारी समझमें नहीं आता। जब इतने दल बन रहे हैं, तब जो आज भो कौंसिलोंके बहिष्कार, हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य इत्यादि कार्यों में विश्वास रखते हैं, उनका अपनी शक्तियोंको एकजुट करना और अपने आदर्शोंका फिरसे उद्घोष करना क्या वांछनीय न होगा? स्वराज्यसे पीठ फेर लेनेका अपराध हम लोगोंपर लगाया जाता है और हमारे अहिंसाके सिद्धान्तकी खुलेआम खिल्ली उड़ाई जाती है। कदम-कदम पर हम लोगोंपर फब्तियाँ कसी जाती हैं कि हम अपना समय और शक्ति नष्ट कर रहे हैं। मैं यह स्वीकार करता हूँ कि हमें इन बातोंकी जरा भी परवाह नहीं करनी चाहिए। परन्तु यह तो जरूरी लगता है कि हम अपना संगठन करें और जो हमारे विचारके हों उन्हें अपने साथ शामिल होनेके लिए कहें। हम कबतक चुप बैठे रहें? कबतक हम अपने विश्वासको परीक्षा होते रहने दें?

धैर्य अन्तिम समयतक वैसेका वैसा बना रहेगा, तभी तो उसका कुछ मूल्य होगा। जीवन्त विश्वास तो भयंकरसे भयंकर तूफान होनेपर भी जैसाका-तैसा ही बना रहता है। अहिंसाकी कार्यप्रणाली हिंसाकी कार्य-प्रणालीसे बिलकुल ही भिन्न होती है। मैं कोई नया दल बनानेकी सलाह नहीं दे सकता। किसी संगठित दलके बिना अहिंसात्मक असहयोग टिका रह सकता है और उसे टिका रहना चाहिए भी। अहिंसात्मक असहयोगको आज कसोटी हो रही है। जिसे अदालत, कौंसिल इत्यादिके बहिष्कारोंपर विश्वास हो, वह अपने जिलेमें अकेला ही क्यों न हो, उसे इसपर दृढ़ बने रहना चाहिए। जिन्हें कुछ कामकी आवश्यकता है, वे खादी और राष्ट्रीय शालाके कामसे सन्तोष मानें । प्रति सप्ताह मैं जुदे-जुदे केन्द्रोंसे प्राप्त रिपोर्टोंके जो आँकड़े