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४११. पत्र : जोजेफ बैप्टिस्टाको

आश्रम
साबरमती
९ सितम्बर, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका ६ सितम्बरका पत्र[१] मिला। हिन्दू-मुस्लिम तनावके सिलसिलेमें एक दिन प्रार्थना-दिवसके रूपमें रखे जाने योग्य सद्भावनाका वातावरण मुझे अभी दिखाई नहीं पड़ता। प्रार्थना हृदयसे ही की जानी चाहिए। मन-मुटाव दूर करनेकी दिली ख्वाहिश होनी चाहिए। अधिक शोभनीय बात तो यह होगी कि प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने घरमें ही प्रार्थना करे।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

श्री जोजेफ बैप्टिस्टा

माथापकाडी

बम्बई

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० १२३८०) की फोटो-नकलसे।

४१२. पत्र: एस० डी० देवको

आश्रम
सबरमती
९ सितम्बर, १९२६

प्रिय देव,

आपका गत पाँच तारीखका पत्र मिला। अहमदनगरके लोग मेरा सन्देश चाहते थे, सो मैंने भेज दिया है।

पंढरपुर आनेके बारेमें, क्या आपको यह मालूम नहीं है कि मैंने २० दिसम्बर तक कहीं बाहर जानेका निमन्त्रण स्वीकार न करनेका संकल्प कर रखा है? हां, कोई बिलकुल ही अप्रत्याशित घटना घट जाये तो बात दूसरी है। इसलिए आप

जमनालालजी, राजगोपालाचारी या गंगाधरराव देशपाण्डेको बुला सकते है। इन्हें ही

३१-२६
  1. अपने पत्र में बैप्टिस्टाने "भारतकी विभिन्न जातियोंके बीच शान्ति और सद्भावना बढ़ानेके लिए" नवम्बरका प्रथम रविवार, प्रार्थना दिवसके रूप में मनानेकी बात लिखी थी।