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कुएँसे निकले, खाईमें गिरे

गैर-सरकारी दोनों तरहके लोग थे। इसे भारत सरकारसे पर्याप्त आर्थिक सहायता दी जाती थी।

इस तथ्यको दृष्टिगत करते हुए सैकड़ों भारतीय प्रवासियोंको लेकर एक और जहाजके अगले मास कलकत्ता पहुँचनेकी सम्भावना है। मेरी परिषद्आ शा करती है कि भारत सरकार स्थितिको गम्भीरताको महसूस करेगी और इस ढंगसे कार्य करेगी जिससे न केवल प्रवासियोंको वर्तमान कष्टोंसे राहत मिले बल्कि एक ही जगहमें उनकी संख्या भी न बढ़े; क्योंकि उस अवस्थामें उनके कष्ट और भी बढ़ जायेंगे।

इस समय तो इतना ही पर्याप्त है कि इन असहाय लोगोंको उक्त माँगी हुई राहत मिल जाये।

किन्तु निर्दोष मालूम पड़नेवाली इस अपीलसे व्यापक तथा मौलिक प्रश्न उठ खड़े होते हैं। यह छोटी-सी टिप्पणी रिपोर्ट द्वारा प्रकाशमें लाई गई विशेष परिस्थितियोंपर ही दी गई है। इसमें उन प्रश्नोंपर विचार नहीं हो सकता, क्योंकि उनसे वह स्पष्ट समस्या जिसपर तुरन्त कार्यवाही करने की आवश्यकता है, खटाईमें नहीं पड़नी चाहिए। फिर भी व्यापक और मौलिक प्रश्न ये हैं :

१. सम्पूर्ण प्रवास-नीति।
२. ब्रिटिश गियाना तथा फीजीका विशेष मामला।
३. अपीलमें उल्लिखित मैत्रीपूर्ण समितियोंका कार्यक्षेत्र।
४. बाहर जानेवाले और वापस आनेवाले प्रवासियोंके प्रति राष्ट्रका कर्त्तव्य।

इन प्रश्नोंपर विचारके लिए अधिक अनुकूल अवसरकी आवश्यकता है। इस समय जितना विचार किया जा सकता है उनपर उससे कहीं अधिक सम्पूर्ण रीतिसे विचार करने की आवश्यकता है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ९-९-१९२६