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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उनके कष्ट और भी बढ़ जाते हैं। पाठक 'उपनिवेशोंमें उत्पन्न होनेका' पूरा अर्थ नहीं समझ पायेंगे। ये लोग न तो भारतीय हैं और न उपनिवेशीय। विदेशों में जहाँ ये जाते हैं वहाँ अपने असंस्कृत तथा भारतीयताको काफी हदतक भूल चुकनेवाले माता-पिताओंसे ये जो-कुछ सीखते हैं उतनी ही भारतीयता इनमें होती है। इस अर्थमें वे उपनिवेशीय भी नहीं होते कि वहाँ उनके उपनिवेशीय अर्थात् पाश्चात्य संस्कृतिमें प्रवेश करनेपर प्रतिबन्ध होता है। इसलिए उनकी स्थिति कुऐँसे निकलकर खाईमें जा पड़नेवाले व्यक्ति जैसी है। वहाँ उनके पास कमसे-कम कुछ पैसा और घर जैसी चीज तो थी। यहाँ समाजमें उनकी दशा उन कुष्ठ रोगियोंके समान है जो अपने आस-पासकी भाषातक नहीं जानते।

इसलिए रिपोर्टमें सुझाव दिया गया है कि सरकार उन्हें ऐसे विभिन्न उपनिवेशोंमें वापस भेज दे जो उनके लिए सर्वाधिक उपयुक्त तथा उन्हें लेनेके लिए तैयार हों। नौसिखुए रंगरूटोंकी अपेक्षा उष्ण कटिबन्धीय उपनिवेश तो इन लोगोंको लेना अधिक पसन्द करेंगे। स्पष्ट रूपसे यह सरकारका ही कर्त्तव्य है; क्योंकि इस सम्बन्ध में विभिन्न उपनिवेशोंसे बातचीत वही चला सकती है। उसे यह कर्त्तव्य बहुत पहले ही पूरा कर लेना चाहिए था। साम्राज्य नागरिकता संघके मन्त्रीने सरकारसे निम्न अपील की है :

फीजी, ब्रिटिश गियाना, ट्रिनिडाड तथा अन्य उपनिवेशोंसे लौटे हुए जो भारतीय प्रवासी इस समय कलकत्तेमें असहाय अवस्थामें पड़े हैं, भारतीय साम्राज्यीय नागरिकता-संघकी परिषदने इस सम्बन्धमें विशेष रूपसे अपना प्रतिनिधि मौकेपर भेजकर उसके जरिये तत्काल जाँच-पड़ताल की। मैं उस जाँच-पड़तालके प्रकाशमें भारत सरकार द्वारा तुरन्त विचार किये जानेके लिए निम्न सिफारिशें पेश करता हूँ :

१. फीजीकी सरकारसे प्रार्थना करनी चाहिए कि वह मुक्त गिरमिटिया मजदूरोंकी निःशुल्क यात्राकी रियायतकी अवधि १९३० से बढ़ाकर १९३५ कर दे।

२. ब्रिटिश गियानासे लौटे हुए जो सैकड़ों भारतीय प्रवासी इस समय कलकत्ते या अन्यत्र रह रहे हैं, उनमें से जो लोग वापस जानेके लिए उत्सुक हैं उन्हें भारत सरकार ५०० परिवारोंको ब्रिटिश गियाना भेजनेके लिए बनाई गई अपनी योजनामें शामिल कर ले।

३. भारत सरकारको तत्काल बम्बई, कलकत्ता और मद्रासमें प्रवासी डिपों स्थापित करने चाहिए। ये डिपो उसी आधारपर संगठित किये जायें जिस आधारपर कलकत्तामें १९२१ में संगठित और १९२३ में तोड़ी गई भारतीय प्रवासी मैत्री समिति (इंडियन इमिग्रान्ट फ्रेन्डली सोसाइटी) का निर्माण हुआ था। यह समिति प्रवासियोंके हकोंको हर तरहसे देखभाल करती थी और इसका प्रबन्ध एक ऐसी स्थानीय समितिके अधीन था जिसमें सरकारी तथा