बाल-विवाहकी रूढ़ी किसी विशेष प्रान्त या समाजतक ही सीमित नहीं है। बल्कि भारत-भरमें प्रचलित है और 'रामायण 'के समयसे चली आती है।
मैं संक्षेपमें यह बतानेकी चेष्टा करूंगा कि किन कारणोंसे हिन्दू स्मृतिकारोंने बाल-विवाहपर जोर दिया होगा। उन्होंने यह इष्ट समझा कि साधारणतः प्रत्येक बालिका विवाहिता होनी चाहिए। यह लड़कियोंके सुख और शान्तिके लिए ही आवश्यक नहीं है, वरन् साधारणतः समाजके लिए आवश्यक है। यदि सभी लड़कियोंको विवाहित होकर रहना है, तो उनके लिए वर चुननेका काम लड़कियोंके माता-पिताओंको करना चाहिए, स्वयं लड़कियोंको नहीं। यदि यह काम लड़कियोंपर ही छोड़ दिया जाये तो नतीजा यह होगा कि बहुतसी लड़कियाँ बिन ब्याही ही रह जायेंगी— इसलिए नहीं कि वे विवाह करना नहीं चाहतीं, बल्कि इसलिए कि सब लड़कियोंके लिए उपयुक्त वर चुनना बहुत कठिन होगा। यह तरीका खतरनाक भी है, क्योंकि इससे अनाचर फैल सकता है और वे युवक जो बाह्यतः अच्छे मालूम होते हैं, भोली-भाली लड़कियों को आचरण-भ्रष्ट कर सकते हैं और यदि वर ढूंढ़नेका काम माता-पिताओंको करना है तो लड़कियोंका ब्याह कम उम्र में ही कर देना होगा, क्योंकि जब वे सयानी हो जाती हैं, तब वे किसीके प्रेममें बंध सकती हैं और तब सम्भव है, वे माता-पिताओं द्वारा चुने हुए वरसे विवाह करना पसन्द न करें। लड़की बचपन में ही विवाह कर देनेसे अपने पतिसे और पतिके परिवारसे समरस हो जाती है। अतः तब अपने पतिसे उसका मेल अधिक स्वाभाविक और अधिक परिपूर्ण होता है। कभी-कभी सयानी लड़कियोंके लिए, जिनके विचार और विशेष प्रकारके बन जाते हैं, नये घरमें पहुँचकर अपनेको तदनुरूप बनाना कठिन हो जाता है।
लड़कियोंके बाल-विवाहके विरुद्ध मुख्य आपत्ति यह है कि उससे लड़- कियाँ तथा उनके बच्चे कमजोर हो जाते हैं। परन्तु यह आपत्ति निम्नलिखित कारणोंसे कोई बहुत समाधानकारक नहीं है: अब हिन्दुओंमें लड़कियोंके विवाह- की उम्र क्रमशः ऊँची होती जा रही है। लेकिन हमारी प्रजाति अधिकाधिक दुर्बल हो रही है। पचास या सौ वर्ष पूर्व हमारे देशके स्त्री-पुरुष अबसे साधारणतया अधिक हृष्ट-पुष्ट, स्वस्थ और दीर्घायु होते थे और उन दिनों लड़कियोंके बाल-विवाहकी प्रथा अधिक प्रचलित थी। देरसे व्याही जानेवाली शिक्षित लड़कियों की तन्दुरुस्ती उन लड़कियोंकी तन्दुरुस्तीकी बनिस्बत, जिन्हें कम शिक्षा मिलती है और जिनका विवाह छुटपनमें ही कर दिया जाता है, अधिक अच्छी नहीं होती। इन तथ्योंसे यह बहुत मुमकिन मालूम होता है कि बाल-विवाहसे शारीरिक अवनति उतनी नहीं होती, जितनी कुछ लोग समझते हैं।