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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उसके सदस्योंको कमसे-कम इतना तो करना ही चाहिए। श्री आयंगारको जो यह बड़ा सम्मान मिला है उसके लिए मैं उन्हें बधाई देता हूँ। मैं उनके सामने जो असाधारण कठिनाइयाँ हैं उनमें भी उनके साथ सहानुभूति प्रकट करता हूँ। मैं ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वह उन्हें उन कठिनाइयोंपर विजय पानेके लिए पर्याप्त बुद्धि और बल दे।

अनुकरणीय

चरखा संघके मन्त्रीके पास सूतका चन्दा भेजते हुए श्रीयुत हरिभाऊ फाटक लिखते हैं :

आज मैं श्रीमती अन्नपूर्णा गोरेका २५,००० गज सूत भेज रहा हूँ। वर्षा ऋतुके चतुर्मासमें, महाराष्ट्रकी कितनी ही महिलाएँ कोई व्रत लेती हैं। श्रीमती अन्नपूर्णाबाईने इस ऋतुम १ लाख गज सूत कातकर चरखा संघको भेजनेका निश्चय किया है। यह सूत उनकी पहले महीनेकी किस्त है। वे मेरे मित्र श्रीधर पन्त शास्त्रीकी पत्नी हैं। दोनों पति-पत्नी अ० भा० चरखा संघके सदस्य हैं। वे सालभरका अपने सूतका पूरा चन्दा भेज चुके हैं। उनका कुटुम्ब व्यवसायी है। वे बाल-बच्चेदार हैं और गरीब हैं; और इसके अतिरिक्त उनको आँखें खराब हैं। इसलिए, उनका यह उद्योग अवश्य ही ध्यान देने योग्य है।

यह उद्योग निस्सन्देह ऐसा ही है। यह राष्ट्रप्रेमके बिना असम्भव है और चरखा-आन्दोलनके मूलमें गरीबोंके प्रति प्रेम, ईश्वर-भक्ति और स्वदेशप्रेम ये सभी बातें हैं।

अछूतोंमें भी अछूत

अस्पृश्यताका अभिशाप 'अछूतों में भी भिद गया है। और इस प्रकार हमारे यहाँ अस्पृश्योंमें भी अस्पृश्यताकी श्रेणियाँ हैं। ऊँची श्रेणीके अछूत निम्न श्रेणीके अछूतोंसे सम्पर्क नहीं रखना चाहते। एक थिया मित्र कालीकटसे लिखते हैं :

निम्न जातिके माने जानेवाले, शिक्षा और सामाजिक स्थितिमें काफी उन्नत और इस दृष्टिसे मलाबारके अन्य किसी भी समाजकी लगभग बराबरीके हम थिया लोगोंका कालीकटमें अपना एक मन्दिर है। श्री श्रीनारायण गुरुके जन्मदिवसके अवसरपर पंचम भाइयोंको भी मन्दिरमें प्रवेश करानेके प्रश्नपर विचार करनेके लिए एक सभा बुलाई गई थी। ज्यादातर लोगोंने इसका विरोध किया और प्रस्तावके समर्थकोंको तंग करते हुए वहाँ खूब गुंडागर्दी भी हुई। हमने पंचम भाइयोंके प्रवेशके पक्षमें मत दिये, किन्तु हमारी संख्या कम थी। इसलिए हमने इस मन्दिरका बहिष्कार कर दिया और हम पूजा करनेके लिए एक अन्य मन्दिरमें जाते हैं, जहाँ इस प्रकारका भेदभाव नहीं किया जाता। हमने इस मामलेमें अन्ततक लड़नेका संकल्प कर लिया है।