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पत्र : ठाकोरदास सुखड़ियाको

तंगीमें हो। में बिके सामानकी बिक्रीके दामोंके रूपमें नहीं, बल्कि सारे मालके लिए ३०० रु० की हुंडी भेजता हूँ। मेरे पास जो चीजें हैं वे न बिकीं तो मैं उन्हें वापस भेज दूंगा और जिनकी माँग होगी वे चीजें मँगवा लूंगा। मैं तुमसे रुपये वापस नहीं मांगूंगा। झबले जो आयेंगे, उन्हें मालमें जमा कर लूंगा। उनकी कीमत तो तुमने हिसाबमें लिख ही ली होगी? ३२५ रु० की चोरी तो 'गरीबीमें आटा गीला' वाली कहावत हो गई है। अब यह चोर हाथ क्या आयेगा?

श्रीमती मीठूबहन पेटिट

पार्क हाउस

कोलाबा, बम्बई

गुजराती प्रति (एस० एन० १०६०७) की माइक्रोफिल्मसे।

४००. पत्र : ठाकोरदास सुखड़ियाको

आश्रम
साबरमती
बुधवार, भाद्रपद सुदी १, ८ सितम्बर, १९२६

भाईश्री ५ ठाकोरदास,

आपका पत्र मिला। आपने जो-कुछ लिखा है वह सब गलत है ऐसा तो मैं कह ही नहीं सकता। पर आपका हितेच्छु होनेके नाते आपको सावधान कर देना चाहता हूँ। हमारे अन्दर दो शक्तियाँ काम करती हैं— एक दृश्य और दूसरी

अदृश्य। अदृश्य शक्ति दृश्य शक्तिसे कहीं अधिक बलवान होती है। वह दैवी शक्ति हो सकती है और आसुरी भी। 'सरस्वतीचन्द्र' में गोवर्धनभाईने[१] इनकी हूबहू तसवीर खींच दी है। कुमुदकी दृश्य शक्ति उसे प्रमाद्धनके पास बनाये रखती थी। पर उसकी अदृश्य शक्ति उसे सरस्वतीचन्द्रकी ओर खींचती जा रही थी। जिसकी अदृश्य शक्ति दैवी है तथा जिसकी दृश्य शक्ति उसके वशमें रहती है, उसे लाख-लाख प्रणाम। यदि आप दोनोंमें इन शक्तियोंका इतना सुन्दर समन्वय है तो फिर कौन दोष निकाल सकता है? दूसरे जन्मके सम्बन्धमें मनुष्यको मात्र एक ही इच्छा शोभा देती है और वह यह कि इस जन्मके उपरान्त वह परमात्मामें जा मिले। यदि उसकी यह इच्छा

३१-२५
  1. (१८५५-१९०७); गुजरातीके एक प्रसिद्ध लेखक जिन्होंने १८८७ और १९०१ के बीच चार भागों में छपे सरस्वतीचन्द्र नामक अपने उपन्यासमें आधुनिक गुजरातके आविर्भावकी कहानी लिखी है। इस उपन्यासकी नायिका, कुमुदकी सगाई पहले सरस्वतीचन्द्र के साथ हुई, पर उसके घर छोड़कर चले जानेके बाद उसका विवाह प्रमादनके साथ कर दिया गया।