है, क्योंकि मेरे लिए तो वह दरिद्रनारायणका प्रतीक है— दरिद्रों और दलितोंमें दर्शन देनेवाले नारायणका प्रतीक है।
यंग इंडिया, ९-९-१९२६
३९८. पत्र : कृष्णकान्त मालवीयको
भाद्रपद शुक्ल १, १९८२ [८ सितम्बर, १९२६]
आपका तार मीला। यह मेरा लेख :
एक निर्दोष बाला थी उसने लोगोंके व्याख्यान सुने। सुनकर माताके पास चली गई और कहा माता, देखो तो यह लोग सब पागल है क्या बकवाद कर रहे हैं। मैं तो मेरे चरखेका मधुर गान ही सुनना चाहती हूं। मुझे यह पागलपन न चाहिए। हमारे व्याख्यानकारोंका व्याख्यान और पत्रकारोंकी लेखनी सुनकर और पढ़कर मेरा हाल उस बालाका-सा हो जाता है।
आपका
मोहनदास गांधी
अभ्युदय प्रेस, अलहाबाद
मूल पत्र (एस० एन० १९९४९) की माइक्रोफिल्मसे ।
३९९. पत्र : मोठूबहन पेटिटको
आश्रम
साबरमती
बुधवार, भाद्रपद सुदी १ [८ सितम्बर, १९२६][१]
तुम्हारा पत्र मिला। पार्सल आ जायेगा। तुमने अंगूरका रस बहुत भेज दिया है। देवदास अब मसूरी पहुँच गया है। तुम्हारा पार्सल उसे मिल गया होगा, क्योंकि उसने लिखा है कि उसे तुम्हारा दूसरा पार्सल मिल गया है। मेरे पास जो माल है उसमें से ७२ चीजें बिक गई हैं। मैंने तो उन्हें लोगोंको दिखानेके लिए रख दिया था। उन्हें बेचनेका कोई विशेष प्रयत्न नहीं किया था। लगता है कि तुम पैसेकी
- ↑ देवदासके मसूरीमें रहनेके उल्लेखसे यह पत्र १९२६ में लिखा गया लगता है।