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अकर्ममें कर्म

वे इसलिंग्टन कमीशनके सदस्य थे, महत्त्वपूर्ण टिप्पणी लिखी थी, देशके दुश्मन नहीं हैं। यदि उनका यह खयाल है कि हिन्दुओंके साथ मुसलमानोंकी बराबरीकी स्पर्धाक बिना मुल्क तरक्की नहीं कर सकता, तो उनको दोषी कौन ठहरा सकता है? मुमकिन है कि उन्होंने तरीके गलत अख्तियार किये हों, लेकिन वे आजादीके प्रेमी जरूर हैं। इसलिए जबकि मैं इन सब प्रकारके विचारवालोंके लिए अपने मस्तिष्कमें स्थान रखता हूँ, तब मेरे लिए तो केवल एक ही मार्ग खुला रह जाता है: मैं साम्प्रदायिकताको एक जरूरी मंजिल नहीं मानता— या यों कहें कि मुझमें उस मंजिलपर होकर जानेकी क्षमता नहीं है। इसलिए जबतक यह तूफान निकल नहीं जाता और जबतक पुननिर्माणका काम फिर प्रारम्भ नहीं हो जाता, तबतक मुझे अपनी शक्ति बचाकर ही रखनी चाहिए।

मैं कौंसिलोंके अन्दर होनेवाले संघर्षको भी थोड़ा दूर ही रह कर देखना चाहता हूँ। जिनका विश्वास कौंसिलोंमें है, कौंसिलोंका काम उत्साहसे करनेके कारण मैं उनका सम्मान करता हूँ।

भारतका शिक्षित समाज ही भिन्न-भिन्न दलोंमें फूटा हुआ है। मैं इन दलोंको एक करनेकी अपनी असमर्थताको स्वीकार करता हूँ। उनके कामका ढंग मेरे कामका ढंग नहीं है। मेरा तरीका नीचेसे चलकर चोटीतक पहुँचनेका है। बाहरवालोंको कामकी यह धीमी चाल ऊबानेवाली मालूम होती है। वे चोटीसे नीचेकी ओर जा रहे हैं और उनका यह ढंग बहुत मुश्किल तथा उलझा हुआ है। वे करोड़ों आदमी, जिनकी ओरसे हस्ताक्षर करनेवालोंने बोलनेका दावा किया है, दलोंकी इन उलझनों-की ओरसे जिन्हें वे समझ नहीं पाते, बिलकुल उदासीन हैं।

उनके लिए तो चरखा ही सब-कुछ है। एक कहावत है, ईश्वरके चक्र धीरे-धीरे लेकिन निहायत कारगर तौरपर चलते हैं। मैं ईश्वरके उन्हीं छोटे-छोटे कताई-चक्रों, चरखोंको चलवानेमें लगा हूँ। जो हस्ताक्षरकर्ता तथा अन्य लोग कुछ परवाह करना चाहें, यह देख सकते हैं कि ये चरखे अनवरत रूपसे चल रहे हैं। उन चरखों-की क्षमता दिनपर-दिन और अधिक प्रत्यक्ष रूपसे बढ़ती जा रही है। और जब यह तूफान बन्द हो जायेगा, और जब उसके फलस्वरूप ये दल एक हो जायेंगे और हिन्दू-मुसलमान, ब्राह्मण-अब्राह्मण, अत्याचारी और अत्याचार-पीड़ित आपसमें मिल जायेंगे तब वे देखेंगे कि शान्तिसे काम करनेवालोंने देशको विलायती वस्त्रका बैरमूलक या हिंसात्मक बहिष्कार करनेके लिए नहीं, बल्कि स्वास्थ्यवर्धक, अहिंसात्मक वैध बहिष्कार करनेके लिए तैयार कर दिया है। कौमको अपनी सामूहिक शक्तिका कुछ-न-कुछ सुबूत तो देना ही चाहिए और वह शक्ति है विदेशी वस्त्रोंका बहिष्कार करनेकी क्षमता।

अपीलपर हस्ताक्षर करनेवाले अपनेको मेरे अनुयायी कहते हैं। मेरी उनको सलाह है कि वे चरखेके नेतृत्वमें आगे बढ़ें। मैंने उस सीधे-सादे और छोटे-से चरखेका मार्गदर्शन छोड़ा नहीं है। यह चरखा मेरे कानोंमें नित्य गरीब जनताके कष्टोंका गीत सुनाता है। परिणाम अच्छा हो या बुरा— मैंने अपना सर्वस्व चरखेको अर्पण कर दिया