३८५. पत्र : बलवन्तराय पारेखको
आश्रम
साबरमती
रविवार, श्रावण बदी १४, ५ सितम्बर, १९२६
आपका पत्र मिला। इस पत्रके साथ पाँचतलावडाके लिए तीन सौ रुपयेकी हुंडी भेज रहा हूँ। उसके मिलनेकी सूचना दीजिएगा। तथा हर महीने उसका हिसाब भाई फूलचन्दको तथा उसकी एक प्रति मुझे भेजते रहिएगा।
भावनगर
गुजराती प्रति (एस० एन० १२२६५) की माइक्रोफिल्मसे।
३८६. पत्र : एस० आर० देशपाण्डेको
६ सितम्बर, १९२६
मेरा हृदय आपकी विपत्तिमें आपके साथ है। आपके जैसे मामलेमें ईश्वर ही सहायक हो सकता है। ईश्वरमें हमारा विश्वास होना या न होना कोई महत्त्व नहीं रखता, ठीक वैसे ही जैसे कानूनकी अनभिज्ञता हमें उसके दण्डसे नहीं बचा सकती। ईश्वर ही सर्वोच्च कानून है।
मैं आपसे यह कहना चाहता हूँ कि हमारे अस्तित्वका अभिप्राय अपनेको जानना है। अपनेको जाननेका मार्ग है। चेतनमात्रकी सेवा। और मानवसमाजकी सेवा आत्मत्यागके बिना नहीं की जा सकती। अतएव हमारे लिए आत्मत्याग ही सबसे ऊँचा विधान है।
डोंगरे मैशंस
चिखलवाड़ी
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९९४७) से।