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पत्र : गिरधारीलालको

मुद्दे उठाये गये हैं, उनके बारेमें मुझे यह कहना है कि दोनों सम्प्रदायों, हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच आज जो मनमुटावकी खाई ज्यादा चौड़ी होती दिखाई दे रही है, आप सभी उसे पाटनेकी कोशिशें अवश्य करें; लेकिन मैं अपने पहलेके मत-पर दृढ़ हूँ; अर्थात् इस दिशामें मेरे अपने प्रयत्नसे फिलहाल कोई वास्तविक हल नहीं निकलेगा। चारों ओर अविश्वासका बोलबाला दिखाई पड़ता। शान्तिपूर्ण वातावरण उत्पन्न हो, दुर्भाग्यसे इसके पहले अभी कुछ और लड़ाई-दंगे होंगे, ऐसा लगता है। जब एक पक्ष दूसरेको नीचा दिखानेकी फिक्रमें रहता हो तब शान्ति असम्भव ही है। इसके अलावा मेरे मनमें यह विश्वास घर कर गया है कि कौंसिल-प्रवेशसे अव्वल तो कोई लाभ होनेवाला है नहीं, यदि हो भी तो उसकी उपयोगिताके आजकल जो लम्बे-लम्बे गीत गाये जा रहे हैं और उसका महत्त्व जो बहुत बढ़ा-चढ़ा कर बताया जा रहा है, इसीसे दोनों सम्प्रदायोंके बीच मेल स्थापित नहीं हो पा रहा है। आज जो भी व्यक्ति कौंसिलोंके बाहर रह जाता है यही सोचता है कि मैं घाटेमें हूँ। और जो बात व्यक्तिके बारेमें सच है वही सम्प्रदायोंके बारेमें भी सच है। यही कारण है कि हर सम्प्रदायके लोग इसी भाग-दौड़में लगे हुए हैं कि उसको ही यथासम्भव अधिक प्रतिनिधित्व प्राप्त हो और सम्प्रदायवादके हमारे जितने प्रतिनिधि कौंसिलोंमें पहुँच जायें, उतना ही अच्छा। यदि आपको ऐसे वातावरणमें प्रयास करनेसे कोई शुभ परिणाम निकलता दीख पड़ता है तो मैं यही कहूँगा कि आपका जोश और आपकी विश्वसनीयता सराहनीय है। परन्तु इस प्रकारके किसी भी प्रयासके प्रति मेरे मनमें उत्साह पैदा नहीं हो सकता। खेद है कि मैं आपको इससे अधिक आशा बँधानेवाला अथवा यों कह लीजिए कि इससे कम निरुत्साहित करनेवाला पत्र नहीं भेज सकता। आप जलियाँवाला बागके सम्बन्धमें जो कुछ भी कहना या पूछना चाहें, उसके सम्बन्ध में मैं आपको अधिक उत्साहके साथ परामर्श दे सकूंगा।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

लाला गिरधारीलाल

चैम्बरलेन रोड

लाहौर

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० ११०७१) की फोटो-नकलसे।