पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/४०८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३७२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सरलता है। उसमें असहिष्णुता और एक प्रकारका अभिमान है; पर उसके गुणोंके सामने उसके दोष नगण्य लगते हैं। वह तुम्हारी निगरानीमें है इसलिए में निश्चित हूँ। मुझे लिखा हुआ उसका पत्र तो तुमने देखा ही होगा। पत्र काफी अच्छा है।

नाभा महाराजको एक पत्र लिखा था, इतना मुझे याद है। उनके पत्रका में जवाब अब दूंगा, उसकी नकल तुम्हें भेजूंगा। तकली वगैरहका पार्सल ९ अगस्तको भेजा था वह रजिस्ट्री शुदा था। आश्चर्य है कि तुम्हें मिला नहीं। यहाँसे पूछनेको कहा है। वहाँ भी पूछना।

मेरा वजन इस तरह [जल्दी-जल्दी] घटा नहीं करता। ९९ के आसपास है। मैं तो यह मानता हूँ कि मेरी तबीयत अब बहुत अच्छी है। नाभा महाराजसे भी बुरे काम करनेवाले दूसरे राजा होंगे। बहुतसे हैं, यह मैं जानता हूँ। लेकिन उनका अत्याचार कुछ कम नहीं था। सरकारने उनके दोषोंके कारण उन्हें पदच्युत नहीं किया। बल्कि में यह मानता हूँ कि यदि उनमें दोष न होते तो सरकार उन्हें पदच्युत नहीं कर सकती थी। मुझे उनसे कोई और शिकायत नहीं है। बात इतनी ही है कि उनके इस आन्दोलनमें में उनकी जरा भी सहायता नहीं कर सकता।

गुजराती प्रति (एस० एन० १२२६३) की फोटो-नकलसे।

३८३. पत्र : घनश्यामदास बिड़लाको

आश्रम,
साबरमती
रविवार, श्रावण कृष्ण १४, ५ सितम्बर, १९२६

भाई घनश्यामदासजी,

आपका पत्र और कटिंग मिले हैं। मैं तो इस बातको भूल गया हूं। इस समय राजनैतिक आबोहवा मुझको बहुत ही दुर्गन्धित प्रतीत होती है।

श्री घनश्यामदास बिरला

पिलानी

राजपूताना
मूल पत्र (सी० डब्ल्यू० ६१३५) की नकलसे।
सौजन्य : घनश्यामदास बिड़ला

आपका,
मोहनदास