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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह विषय खोज करने योग्य है। लेकिन में अपने अनभिज्ञ पाठकोंको सावधान करता हूँ कि वे इनका प्रयोग न करें और जो कोई हठयोगी मिल जाये उसीको गुरु न मान लें। उन्हें निश्चय जान लेना चाहिए कि संयत और धार्मिक जीवन ही अभीष्ट संयमके पालनकी पर्याप्त शक्ति दे देता है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २-९-१९२६

३७९. पत्र : प्रभुदास भीखाभाईको

२ सितम्बर, १९२६

भाईश्री ५ प्रभुदास,

आपका पत्र मिला। आप निश्चित रूपसे यह जान लें कि मैं प्राणायामको कोई छोटी चीज नहीं मानता। परन्तु जो बात प्राणायामसे हासिल की जा सकती है वह दूसरे साधनोंसे भी प्राप्त की जा सकती है। इसलिए मैं प्राणायामको कोई अनिवार्य वस्तु नहीं मानता। मुझे लगता है कि अव्वल तो प्राणायाम बहुत कष्ट साध्य क्रिया है। दूसरे ऐसी अनेक क्रियाएँ हैं जो साधनके रूपमें सबके लिए आसान हैं। उन साधनोंका उपयोग, खासकर वर्तमान युगमें, श्रेयस्कर है। प्राणायामके द्वारा वीर्यस्तम्भन सम्भव है, पर मुझे आशंका है कि रसका क्षय केवल प्राणायामसे नहीं हो सकता । मुख्य बात तो बस इतनी ही है। आप स्वयं उसका अभ्यास कर रहे हैं। अपने प्राणायामके अभ्यासमें जब आप अच्छी सफलता प्राप्त कर लें तब मेरे पास आकर दुबारा उसकी चर्चा करें। प्राणायाममें जिन्हें सफलता प्राप्त हुई हो उनसे मिलनेकी मेरी इच्छा अवश्य है। काकासाहब कालेलकर आश्रमवासी अवश्य हैं, पर आजकल अपनी बीमारीके कारण बाहर रहते हैं। उन्होंने प्राणायामका अच्छा अभ्यास किया है। जब उनका स्वास्थ्य सुधर जाये तब आप उनके साथ जरूर पत्र-व्यवहार कीजिएगा अथवा जब वे यहाँ आयें तब उनसे मिलियेगा। बहुत करके दीवालीतक यहाँ आ जायेंगे । उनका पता मैं आपको नहीं लिख भेज रहा हूँ क्योंकि फिलहाल उनके साथ किये जानेवाले पत्र-व्यवहारको बहुत ही सीमित रखनेकी आवश्यकता है। विनोबा प्राणायामके दूसरे अभ्यासी है; वे वर्धामें रहते हैं। उनका पता है : सत्याग्रहाश्रम, वर्धा। उन्हें आप अवश्य पत्र लिख सकते हैं। सम्भव है उनके अनुभव आपको प्राप्त हो जायें।

राय प्रभुदास भीखाभाई

मु० कठाणा लोट
पोस्ट कठाणा लोट

बारास्ता नडियाद

गुजराती प्रति (एस० एन० १२२६२) की फोटो-नकलसे।