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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं, इसलिए मैं इनसे सम्बन्धित बहसोंमें पड़नेमें उकताता होऊँगा। बात बहुत ठीक है। कौंसिलोंको लेकर मेरे मनमें कोई उत्साह पैदा नहीं हो सकता। मेरी राजनीति तो चरखा, अस्पृश्यता निवारण और हिन्दू-मुसलमान इत्यादिकी एकता की प्रार्थनातक सीमित है। इन तीनोंमें मेरा सारा समय और ध्यान खप जाता है। जिन चीजोंको में महत्त्व नहीं देता, जिन्हें मैं समझता भी नहीं और जिनसे मुझे अरुचि-सी है, उनमें रुचि लेनेसे क्या लाभ? इसलिए आपकी समझमें आ जायेगा कि उकताहट मुझे आपसे नहीं होती। अगर आप आयें और चरखेकी उपयोगिता तथा उसके आशाभरे सन्देशके प्रचारके तरीकों के बारेमें मुझसे बातें करें, कताईकी कलाके तकनीकी पहलूपर मुझे कुछ सिखायें तो मैं आपकी बातचीतसे कभी नहीं ऊबूंगा। परन्तु यदि आप मुझे देशके भिन्न-भिन्न कौंसिल-दलों या उसके उम्मीदवारोंके गुण-दोषोंका वर्णन सुनाने बैठ जायें तो उसमें भाग लेनेकी मेरी उतनी ही कम इच्छा होगी जितनी कि प्रतिस्पर्धी घुड़सवारों (जोकियों) की चर्चामें लेनेकी हो सकती है।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत सी० विजयराघवाचारियर

फेयरी फॉल्स व्यू
कोडाईकनाल ऑब्जरवेटरी

दक्षिण भारत

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०९३८) की फोटो-नकलसे।

७. पत्र : गिरधारीलालको

आश्रम
साबरमती
१६ जून, १९२६

प्रिय लाला गिरधारीलाल,

जानकारी देनेवाले एक सह-पत्रके[१] साथ आपका पत्र[२] मिला। मैं उन दोनोंको गौरसे पढ़ गया। सह-पत्रके बारेमें कुछ कह नहीं सकता। आपके अपने पत्रमें जो

(एस० एन० ११०७०)।
  1. १. सह-पत्र में साम्प्रदायिक समस्याके सम्बन्धमें ११ जूनको जारी किया गया एक लम्बा वक्तव्य था; यह मोतीलाल नेहरूको सम्बोधित किया गया था। (एस० एन० ११०७०)।
  2. २. पत्र लेखकने १२ जूनके इस पत्र में लाहौर में साम्प्रदायिक शान्ति स्थापित करनेके सिलसिले में मुसलमानोंके साथ हुई अपनी समझौता वार्ताका उल्लेख किया था और आग्रह किया था, "ज्यादा अच्छा वातावरण बनानेके लिये प्रयत्न किये जाने चाहिए। हम इसके लिए स्वयं प्रयत्न नहीं करेंगे तो समूचे देशपर कोई भारी विपत्ति हमें इसके लिये विवश कर देगी।" उन्होंने इस सम्बन्ध में गांधीजीसे परामर्श मांगा था।