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'बाइबिल' पढ़नेका गुनाह

सम्भावना नहीं है? 'बाइबिल' में ऐसी कौनसी खास बात है कि जो हमारे धर्मग्रन्थों में नहीं है? मुझे पूर्ण आशा है कि आप इसका सन्तोषजनक उत्तर देंगे और 'बाइबिल' की तुलनामें वेदोंको तरजीह देंगे।

मुझे भय है कि मैं इस पत्र प्रेषककी प्रार्थना नहीं मान सकता, क्योंकि मुझे अपनी या दूसरोंकी इच्छाकी अपेक्षा विद्यार्थियोंकी माँगको अधिक मान देना चाहिए; वह उनका अधिकार है। जब उन्होंने मुझे प्रति सप्ताह एक घंटा पढ़ानेके लिए कहा, तब मैंने उनके सामने तीन बातें रखीं— वे चाहें तो 'गीता' पढ़ें, चाहे तुलसीकृत 'रामायण' और चाहे अपने प्रश्नोंके उत्तर पूछें। राय लेनेपर अधिक छात्रोंने 'बाइबिल' पढ़ना और प्रश्न पूछना पसन्द किया। मेरी रायमें उन विद्याथियोंको इस चुनावका हक था। उनको 'बाइबिल' पढ़ने या दूसरोंसे सुननेका पूरा अधिकार है। मैंने 'गीता' या 'रामायण' सुनानेका प्रस्ताव उनके सामने रखा था, क्योंकि मैं ये दोनों पुस्तकें आजकल आश्रमवासियोंको पढ़ा रहा हूँ और इसलिए गुजरात विद्यापीठमें इन दोनोंमें से कोई भी पुस्तक पढ़ाने में मुझे कमसे-कम तैयारी व मेहनत करनी पड़ती। परन्तु उन विद्यार्थियोंने शायद यह सोचा कि वे 'गीता' और 'रामायण' तो दूसरेसे पढ़ लेंगे, लेकिन 'बाइबिल' के अर्थको मुझसे समझ लें, क्योंकि वे जानते थे कि मैंने उस ग्रन्थका अच्छा खासा अध्ययन किया है।

मैं प्रत्येक सुशिक्षित स्त्री या पुरुषका यह फर्ज मानता हूँ कि वह संसार भरके धर्मग्रन्थोंको सहानुभूतिसे पढ़े। यदि हम दूसरोंके धर्मोकी उतनी ही इज्जत करना चाहते हैं, जितनी हम उनसे अपने धर्मकी कराना चाहते हैं तो संसारके सभी मतोंका प्रेमभावसे अध्ययन करना हमारा पवित्र कर्त्तव्य हो जाता है। हमको इस बातसे डरनेकी कतई जरूरत नहीं है कि दूसरे मजहब हमारे सयाने बालकोंपर अपना असर डाल देंगे। हम बालकोंको संसारके निर्दोष साहित्यका अध्ययन बिना भेदभावके करनेके लिए उत्साहित करके उनका जीवनके प्रति दृष्टिकोण उदार बनाते हैं। हाँ, डरका मौका तब है जब कोई नवयुवकोंको अपने मजहबकी किताबें छिपे-छिपे या खुल्लम-खुल्ला अपने दीनमें मला लेनेकी नीयतसे सुनाए। उस सूरतमें उसके दिलमें अपने मजहबके प्रति पक्षपात जरूर होगा। जहाँतक मेरी बात है मैं तो 'बाइबिल' या 'कुरान' या किसी दूसरे धर्मग्रन्थका अध्ययन करना या उसके प्रति श्रद्धा रखना अपने पक्के सनातनी हिन्दू होनेके साथ संगत मानता हूँ। जो मनुष्य संकुचित विचा- रोंका है तथा धर्मान्ध है और जो किसी बुरी बातको महज इसलिए अच्छी मानता है कि वह प्राचीन कालसे चली आती है या उसका समर्थन किसी संस्कृत पुस्तकसे होता है, वह हरगिज सनातनी हिन्दू नहीं है। मैं पक्का सनातनी हिन्दू होनेका दावा इसलिए करता हूँ कि यद्यपि में उन बातोंको, जो मेरी नैतिक भावनाके प्रतिकूल होती हैं, नहीं मानता, तथापि मुझे हिन्दू धर्मग्रन्थोंमें आत्माकी प्रत्येक आवश्यकताकी पूर्तिकी सामग्री मिल जाती है। दूसरे धर्मोके आदरपूर्वक अध्ययनसे हिन्दू धर्म-ग्रन्थोंके प्रति मेरी श्रद्धा, उनमें मेरा विश्वास कम नहीं हुआ है। बल्कि मुझे उनसे हिन्दू धर्मग्रन्थोंको समझनेमें सहायता मिली है। उन्होंने जीवनके प्रति मेरा दृष्टिकोण विशाल