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राष्ट्रीय शालाएँ

पत्रलेखक भरतीकी बुराईसे बचनेके उपाय पूछते हैं। सबसे कारगर उपाय लोकमत है। पत्रलेखकको काफी कार्यकर्त्ता इकट्ठे करने चाहिए। उनका यह काम हो कि अवकाशके समयमें आसपासके गाँवोंमें जायें और देहातियोंको चेताएँ कि वे अपने लिये बिछाये गये जालमें न फँसें। इन कार्यकर्त्ताओंमें से किसी एकको या तो खुद जाकर या इस विषयपर प्रकाशित हुए साहित्यसे असमके मजदूरोंकी हालातका अध्ययन करनेकी कोशिश करनी चाहिए।

हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य संघ

हाल ही में बेगम मुहम्मद जहीनुद्दीन मक्काईने, बंगलौरकी नारी शारदा समितिमें एक भाषण दिया था । एक भाईने उनके दिलचस्प भाषणकी एक प्रति मेरे पास भेजनेकी कृपा की है। मैं उसका कुछ अंश नीचे देता हूँ :[१]

ये भावनाएँ सराहनीय हैं, परन्तु इन महिलाके बताये हुए संघके बनाने लायक वातावरण तो आज दिखाई नहीं देता।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २-९-१९२६

३७४. राष्ट्रीय शालाएँ

शोलापुरके एक सज्जन लिखते हैं कि मैंने गत ८ अगस्तको 'नवजीवन' में राष्ट्रीय शालाओंके बारेमें जो लेख[२] लिखा था उसका समाचारपत्रोंमें अनुवाद प्रकाशित हुआ है। अनुवादमें कहा गया है कि मैं ऐसी एक भी राष्ट्रीय शालाके बारेमें नहीं जानता जो बेलगाँव कांग्रेसमें[३] राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओंसे सम्बन्धित परिभाषाके साथ मेल खाती हो। यह भी कहा गया है कि अनुवाद खरी राष्ट्रीय शालाओंको भी हानि पहुँचा सकता है, इसलिए उसका खण्डन किया जाना चाहिए। मैंने अनुवाद नहीं देखा है। किन्तु यह तो मैं जानता ही हूँ कि मैंने ऐसी कोई राय नहीं दी जैसी अनुवादसे परिलक्षित होती है। बल्कि इसके विपरीत में ऐसी कुछ राष्ट्रीयशालाओंको जरूर जानता हूँ जो उस परिभाषाके मुताबिक चलाई जा रही हैं।

पत्र-लेखकने जिस लेखका हवाला दिया है मैं यहाँ उसके सम्बन्धित अनुच्छेदका अनुवाद दे रहा हूँ :

  1. यह उद्धरण यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसके अनुसार वक्ताने कहा था कि हिन्दू-मुस्लिम ऐक्यके लिए काम करना पुनीततम समाज सेवा है। हिन्दुओं और मुसलमानोंका ईश्वर एक है। हिन्दुओं और मुसलमानोंका आपस में लड़ना पागलपन नहीं तो मूर्खता अवश्य है। उन्होंने अन्तमें एक हिन्दू-मुस्लिम एकता संघ बनानेका अनुरोध किया जिसके सदस्योंका काम साम्प्रदायिक दंगोंके समय दोनों जातियोंके लोगोंकी रक्षा करना हो ।
  2. देखिए "राष्ट्रीय शालाएँ", ८-८-१९२६ ।
  3. देखिए खण्ड २५ ।