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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

न्यायसंगत हो और उनकी ओरसे सामने रखी जा सके, स्वीकार करनेके लिए तैयार हैं। मेरे मनपर उनकी यह छाप पड़ी कि वे एक न्यायप्रिय और उदार मालिक हैं। मेरे खयालसे उद्योगके प्रति उनके आकर्षणका कारण इस प्रसिद्ध परिवारको अधिकसे-अधिक धन उपलब्ध करने के लिए ही नहीं था। वह एक स्वतन्त्र आकर्षण था। मैं स्वर्गीय रतन टाटाके परिवार के सदस्योंसे संवेदना व्यक्त करता हूँ।

मजबूरी क्यों?

एक पत्रप्रेषक अपने सुतकी कमजोरीको वाजिब ठहराते हुए लिखते हैं, "हमको बाजारसे अच्छी रुईके भावमें मजबूरन रद्दी रुई खरीदनी पड़ती है।" इसमें मजबूरीकी कौन-सी बात है? यदि किसी जगह अच्छी कपास नहीं मिल सकती, तो वह जहाँसे मिले वहाँसे मँगवा ली जानी चाहिए। बंगाल, बिहार और उड़ीसाके लोग वर्धासे अच्छी रुई मँगवाते हैं। मैंचेस्टर हिन्दुस्तान, यूगांडा, मिस्र और अमेरिकासे मँगवाता है। फिर पत्रलेखक महाशय अपने निकटवर्ती जिले या सूबेसे क्यों नहीं मँगा सकते? अ० भा० च० संघके सदस्योंके खराब सूत कातनेका कोई कारण नहीं है। अंग्रेजीमें एक कहावत है कि "जो काम करने लायक है, वह अच्छी तरह किया जाना चाहिये। केवल चरखा चलाने में ही खादीके प्रति प्रेमकी इतिश्री नहीं हो जाती; कातना तो कलाका पूर्ण ज्ञान प्राप्त करनेके मार्गमें अथवा उसके अर्थशास्त्र में पहला कदम है।

कुली-भरतीकी बुराई

सिरसी (कनारा) से एक भाई लिखते हैं :

असमके चायके बगीचोंके मालिकोंका एक दलाल वहाँकी चायकी खेतीके लिए कुली भरती करनेका एक केन्द्र खोलना चाहता है। वह मुसलमान कुली भरती करना नहीं चाहता, क्योंकि वे आज्ञाकारी नहीं होते। वह हिन्दुओंको ही भरती करना चाहता है, क्योंकि वे दब्बू होते हैं। वह एक कुलीकी भरती-पर पन्द्रह रुपया देता है। क्या यह बुराई रोकी नहीं जा सकती? इस बारेमें कई गलत बातें कही जा रही हैं।

यह बेशक एक बड़ी बुरी बात है। असम कोई निर्जन स्थान नहीं है। अगर ठेठ कनारासे सुदूर असममें मजदूर ले जाने पड़ें तो जरूर उस काममें कोई खराबी है। कनाराके सीधे-सादे ग्रामीणोंको असमके चायके बगीचोंकी स्थिति मालूम होनी असम्भव है। दलालके बीचमें पड़ते ही कामके करारकी स्वतन्त्रता समाप्त हो जाती क्योंकि उसका काम तो येनकेन प्रकारेण मजदूर जुटाना होता है। यों तो सभी कनारा- निवासी असममें जा सकते हैं; बशर्ते कि उनकी जानेकी इच्छा हो और उनके जानेसे असमियोंका काम न छिने। परन्तु यदि पत्रलेखक द्वारा वर्णित तथ्य सही हैं तो प्रस्तुत मामलेमें कनारा निवासियोंकी इच्छाका कोई प्रश्न नहीं हो सकता। और जो भी बाहरी आदमी असम जायेगा वह वहाँ असमवासियोंका काम ही छीनेगा। असममें चायकी खेती करनी ही है तो वह जबतक असममें गरीब लोग बेकार हैं तबतक वहींके मजदूरों द्वारा की जानी चाहिए।