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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। मैंने यह भी देखा है कि यहाँ मिलनेवाले तेल कमजोर हाजमेवाले लोगोंको अनुकूल नहीं पड़ते; इसलिए उनका इस्तेमाल न करनेके लिए कहता हूँ। नमक हमेशा लेना जरूरी नहीं है। ब्रह्मचर्यका पालन करनेकी दृष्टिसे तो उसका त्याग ही ठीक है। दवाके रूपमें उसका बहुत उपयोग है। उपवास करते समय मैं हमेशा पानीके साथ नमक लेता हूँ।

दूधकी जगह मीठे दहीकी छाछ लेना उतना ही अच्छा रहेगा। छाछमें से सारा मक्खन निकाल लेनेमें भी कोई हानि नहीं है, सब प्रकारसे लाभ ही है।

खूराककी मात्रा स्वतन्त्र रूपसे निश्चित नहीं की जा सकती। प्रत्येक व्यक्तिको अपने अनुभवके अनुसार उसका निर्णय करना चाहिए। गेहूँ, दूध, एक सब्जी और नींबू, इनके अलावा किसी दूसरी चीजकी जरूरत नहीं है। गेहूँ और दूधमें जो मिठास रहती है उतनी ही काफी है।

इसमें तुम्हारे सभी प्रश्नोंके उत्तर आ जाते हैं। जबतक तुममें पूरी ताकत नहीं आ जाती या टट्टी ठीकसे नहीं होती तबतक सिर्फ दूध और मुनक्के या छाछ और मुनक्के ही लो। उपवास छोड़नेपर टट्टीके लिए एनिमा लेना जरूरी है। दो-तीन दिन तक शौच अपने-आप न हो तो थोड़ा एरंडीका तेल पी लेना।

बापूके आशीर्वाद

खादी कार्यालय

गारियाधार

काठियावाड़

गुजराती पत्र (एस० एन० १९९४६) की माइक्रोफिल्मसे।

३६८. पत्र : सुरेशचन्द्र बनर्जीको

आश्रम
साबरमती
१ सितम्बर, १९२६

प्रिय सुरेश बाबू,

आपका पत्र[१] मिला। श्री बिड़लाने अब अपना विचार बदल दिया है। उन्होंने मुझे इस आशयका पत्र लिखा है कि वे एक सालके लिए बिना सूद रुपया उधार देने को तैयार तो हैं परन्तु शर्त यह होगी कि आपका संघ ठीक तिथिको रुपया

  1. गांधीजीने २१ अगस्त, १९२६ को जो पत्र बनर्जीको लिखा था उसके उत्तरमें २८ अगस्तको बनर्जीने गांधीजीके पत्रको प्राप्ति-सूचना देते हुए लिखा था कि वे कलकत्तामें बिद्दलासे नहीं मिल पाये थे। परन्तु आशा है कि बिड़ला कर्ज दे देंगे और ब्याज नहीं लेंगे। यदि यह सम्भव न हो सका तो माल कोमिल्ला यूनियन बैंकके पास गिरवी रख कर रुपया उधार लेना होगा (एस० एन० ११२३३ )।