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५. पत्र : वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

आश्रम
साबरमती
१६ जून, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र[१] मिला। इसके लिए कोशिश कर रहा हूँ। बात केवल इतनी ही है कि धन एकत्रित करनेकी मेरी क्षमता अब उतनी नहीं रह गई है और वह समाज-को होनेवाली इस क्षति जैसे मौकोंपर, मुझे थोड़ी अखरती है। आपने सेठ अम्बालालको[२] पत्र लिखा है, यह जानकर हर्ष हुआ। मैं भी उन्हें पत्र लिख रहा हूँ। जमनालालजी यहाँ कुछ ही दिनोंमें आनेवाले हैं। इसलिए उन्हें लिखनेका इरादा नहीं है।

हृदयसे आपका,

माननीय वी० एस० श्रीनिवास शास्त्री

सवेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी
डेकन जिमखाना डा०

पूना

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०९३६) की फोटो-नकलसे।

६. पत्र : सी० विजयराघवाचारियरको

आश्रम
साबरमती
१६ जून, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। धन्यवाद। हकीम साहबने[३] अभीतक मुझे पत्र नहीं लिखा। आपसे उनके वादेके सिवाय उनका पत्र वैसे भी अबतक आ जाना चाहिए था। आपने कहा है कि राजनीतिक विषयोंके बारेमें अब कहनेके लिये कोई नई बात तो है

  1. १. यह पत्र पूना स्थित भारत सेवक समाज (सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी) के आगसे क्षतिग्रस्त छापाखानेके विषयमें था। गांधीजी इस विषय में उन्हें तीन और पत्र ३० मई, ४ जून और ११ जून, १९२६ को लिख चुके थे। देखिए खण्ड ३०, पृष्ठ ५४४-५४५, ५६८ और ६०५।
  2. २. अम्बालाल साराभाई।
  3. ३. हकीम अजमलखाँ।