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पत्र : शंभुशंकरको

बोर्डपर लगा हुआ है। जाहिर है, हमें इससे यही सबक सीखना चाहिए कि हममें हरएकको देवनागरी और फारसी दोनों ही लिपियाँ जाननी चाहिए। तबतक ऐसी गलतियाँ और इस तरहकी देरकी गुंजाइश बनी ही रहेगी।

मैं अब सर हेनरी लॉरेंसको सीधे लिखूंगा और अपेक्षित जानकारी उनको भेज दूंगा।[१]

चीनके रेशमके सिलसिलेमें चलनेवाली बहसको तुम सबके फिरसे आश्रममें आने तक मुल्तवी कर देना पड़ेगा। तुम्हें मालूम होना चाहिए कि तुम जिन दिनों यहाँ थीं, मैं तुम्हारे भजन जी भरकर नहीं सुन पाया । इसलिए तुमको यदि और किसी कामसे नहीं तो मुझे भजन सुनाने तो आना ही पड़ेगा। तुमको ज्यादा अच्छी और चंगी बनना चाहिए। मीराबाईने तुम्हारे साथ उसकी पूरी बातचीतके बारेमें बतलाया है। तुम यहाँ जितनी बार चाहो आओ और जबतक जी चाहे रहो। तुम इसे अपना घर मानो और तुम्हें जिस भी चीजकी जरूरत पड़ेगी, उसे मुहैया करनेकी पूरी कोशिश की जायेगी।

हृदयसे तुम्हारा,
बापू

कुमारी रेहाना तैयबजी
कैम्प बड़ौदा

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ९६०१) की फोटो-नकलसे।

३६७. पत्र : शंभुशंकरको

आश्रम
सोमवार, ३० अगस्त, १९२६

भाई शंभुशंकर,

तुम्हारा पत्र मिला,

खुराकमें थोड़ी सब्जी जरूर होनी चाहिए। यह सब्जियाँ तुम अपने बगीचे में ही उगा सकते हो। अचार बिलकुल जरूरी नहीं, हाँ, गर्मीके दिनोंतक सब्जीको टिकानेके लिए उसका उपयोग हो सकता है। अचारको हानिकर होनेसे बचानेके लिए उसमें राई, मिर्च और तेल नहीं डाले जाने चाहिए। अचार सिरकेमें डालकर भी टिका रखा जा सकता है। मैंने पुस्तकमें[२] जो विचार व्यक्त किये थे वे अभीतक जैसेके तैसे हैं। परन्तु यहाँ दूधकी जगह ले सकनेवाली कोई चीज सुलभ नहीं है। इसलिए उसे रखना पड़ा

३१-२३
  1. देखिए “पत्र : रेहाना तैयबजीको”, २१-८-१९२६ ।
  2. सम्भवतः आरोग्य विषे सामान्य ज्ञान नामक गुजराती पुस्तक।