पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/३८७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३५१
पत्र : अवधनन्दनको

लगता है कि ऐसी परिस्थितियोंमें अभिकरणको बन्द कर देना ही अच्छा रहेगा। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आन्ध्रदेशका साराका सारा संगठित खादी कार्य बन्द कर दिया जाये। हाँ, इसका मतलब यह जरूर है कि यथार्थ परिस्थिति स्वीकार कर ली जाये और उसका सामना किया जाये। यदि थोड़ेसे भी कार्यकर्त्ता ऐसे हों जो आपपर पूरी श्रद्धा रखते हों, तो उन्हें इकट्ठा कर लें और उनकी सहायतासे खादीके कामको आगे बढ़ायें। स्वतन्त्र संस्थाएँ तो फिर भी रहेंगी ही। वे अपनी मर्जीके मुताबिक काम करें। इस प्रकार वास्तविकताको मानकर और अपनी मर्यादाओंको ध्यान में रखकर चलनेसे हम किसी दिन कार्यकर्ताओंको अपने पक्षमें ला सकेंगे और अपना काम यथोचित फैला सकेंगे।

यह मेरी निजी राय है। मैंने यह राय परिषद्से पूछे बिना दी है। अखिल भारतीय चरखा संघके जरिए कोई भी कदम उठानेसे पहले मैं यह जान लेना चाहता हूँ कि इस सम्बन्धमें आपके अपने विचार क्या हैं।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत जी० सीताराम शास्त्री

अखिल भारतीय चरखा संघ
(आन्ध्र शाखा)

गुण्टूर

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ११२३२) की माइक्रो फिल्मसे।

३६४. पत्र : अवधनन्दनको

आश्रम
साबरमती
२८ अगस्त, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मेरा तो खयाल है कि हिन्दी प्रचार कार्यके बारेमें आपका विचार कुछ ज्यादा ही निराशावादी है। जो लोग वास्तविक शिक्षण कार्यमें लगे हैं उन्हें पूरी तरह यह विश्वास रखकर अपने कर्त्तव्यका पालन करते रहना चाहिए कि सच्चे हृदयसे और त्याग-भावसे पूरा किया गया कर्त्तव्य यथासमय यथेष्ट फलदायी होता ही है।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० ११२९७) की माइक्रोफिल्मसे।