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३६०. पत्र: तुलसी मेहरको

आश्रम
साबरमती
शुक्रवार, श्रावण कृष्ण ४, [ २७ अगस्त,१९२६]

भाई तुलसी महेर,

तुम्हारा पत्र मिलनेसे आनंद होता है। बहुत अच्छा काम कर रहे हो। जो कपड़े वहां बुने जाते हैं उसका थोड़ा सा नमूना काटकर भेज देना। वहां चरखाकी किंमत क्या लगती है? लकड़ी कहांसे आती है? चाक वहीं बनती है क्या? बनती है सो क्या दाम लगता है? चरखे कितने चलते हैं? कताईका दाम क्या दिया जाता है? सूतका आंक कितना रहता है? सूतकी मजबूतीकी परीक्षा करनेका रिवाज अगर नहीं रखा है तो रखना।

बापूके आशीर्वाद

मूल पत्र (जी० एन० ६५२६) की फोटो-नकलसे।

३६१. पत्र : मरीचिको

आश्रम
साबरमती
शुक्रवार, श्रावण बदी ४, २७ अगस्त, १९२६

भाईश्री ५ मरीचि,

आपका पत्र मिला। आश्रममें अपने रहनेसे आपको भले ही सन्तोष हुआ हो, लेकिन मुझे नहीं हुआ। कोई भी मेहमान आये और आकर बीमार पड़ जाये, यह बात मेरे लिए असह्य है। मुझे जल्दी मालूम हो जाता तो मैं अपने मनको तसल्ली देने लायक कोशिश जरूर करता। मेरी मान्यता है कि हममें भिन्न-भिन्न प्रकारके जलवायुमें रहनेकी शक्ति होनी चाहिए। आपमें यह शक्ति है ऐसा मैं समझता था। लेकिन अब तो जब आप यहाँ दोबारा आकर रहेंगे, इसकी परीक्षा तभी होगी।

चरखेके बारेमें आप जो लिखते हैं वह ठीक ही है। यह कैसे अस्तित्व में आया इसकी जाँच सूक्ष्मतासे की जानी चाहिए।

श्री मरीचि

श्रीयुत एच० पी० मॉरिस
६१, कावसजी पटेल मार्ग

फोर्ट, बम्बई

गुजराती प्रति (एस० एन० १२२६०) की माइक्रोफिल्मसे।