लेखमें आँकड़ोंकी भरमार है। ये आँकड़े मैंने सर गंगारामकी सांख्यिकीसे लिये गये सारांशमें प्रमुख रूपसे दिये हैं।[१] यह सारांश एक पक्ष पूर्व प्रकाशित किया जा चुका है। लेखक द्वारा निकाले गये निम्नलिखित परिणाम दिलचस्प एवं शिक्षाप्रद हैं:
१. इससे हमारे उन हजारों होनहार बालकों तथा बालिकाओंकी जीवन-शक्ति धीरे-धीरे नष्ट होती जा रही है जिनपर हमारे समाजका सम्पूर्ण भविष्य निर्भर करता है।
२. इससे प्रतिवर्ष हजारों कमजोर बच्चे— लड़के-लड़कियाँ पैदा होते हैं। ये बच्चे अपरिपक्व माता-पिताओंकी सन्तान होते हैं।
३. यह हमारे समाजमें व्याप्त भयानक बाल-मृत्युसंख्याका तथा मृत-प्रसवका एक सबल कारण है।
४. इसके फलस्वरूप समाजम प्रतिवर्ष हजारों बालिकाएँ विधवा होती हैं। ये बाल-विधवाएँ स्वयं समाजके लिए भ्रष्टाचार तथा खतरनाक छूतकी बीमारीका साधन बनती हैं।
५. यह (१) संख्या, (२) शारीरिक बल और उत्साह तथा (३) नैतिकता की दृष्टिसे हिन्दू समाजके क्रमिक तथा सतत ह्रासका एक प्रमुखतम कारण है।
यंग इंडिया, २६-८-१९२६
३५७. केवल आपके लिए ही क्यों?
हिसारके लाला श्यामलाल लिखते हैं :
कुछ दिन हुए मैंने 'यंग इंडिया' में आपका 'अज्ञानका जाला'[२] शीर्षक लेख पढ़ा था। इस लेखमें आपने अन्य विषयोंके साथ यह भी कहा था कि भारतकी आर्थिक मुक्तिके लिए चरखा चलाना आवश्यक है, इसलिए प्रत्येक भारतीयके लिए आवश्यक है कि वह यज्ञके रूपमें या अन्य प्रकारसे, चरखा चलाये। उसमें आपने यह भी लिखा था, 'मैं चरखेको अपने मोक्षका द्वार मानता हूँ।' किन्तु वह आध्यात्मिक मुक्तिका द्वार आपके लिए ही क्यों है? हमें इस कथनकी संसारकी दो महान सभ्यताओं अर्थात् पूर्वकी (आर्य) तथा पश्चिमकी (यूनानी) सभ्यताओंके प्रकाशमें जाँच करनी चाहिए। कबीर और नानक के सिवाय मध्ययुगीन या प्राचीन प्रत्येक ऋषिने यह कहा है कि चरखा स्त्रियोंको