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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

रंगभेद विधेयक

स्थानीय भारतीय कांग्रेसको दक्षिण आफ्रिकाके खान तथा उद्योग विभागका निम्न पत्र मिला है। इस पत्रमें रंगभेद विधेयकपर अन्तिम बात कह दी गई है :

आपने खान तथा निर्माण अधिनियम संशोधन विधेयक (माइन्स ऐंड वर्क्स ऐक्ट अमेंडमेंट बिल) के सम्बन्धमें इस मासको १४ तारीखको परमश्रेष्ठ गवर्नर जनरलके नाम एक तार भेजा था। इस तारके बारेमें मुझे आपको यह सूचित करने का आदेश मिला है कि न्यायालयों द्वारा कुछ विनियमोंको अवैध घोषित करने से पूर्व जो स्थिति थी सरकारका इरादा उचित समयपर हर हालतमें पुनः वैसी ही स्थिति स्थापित करनेपर विचार करनेका है। स्वास्थ्य तथा सुरक्षाकी दृष्टिसे ऐसा करना आवश्यक है।
इस समय कोई ऐसा इरादा नहीं कि विनियमोंको न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णयसे पूर्वकी स्थितिसे अधिक व्यापक बनाया जाये। यदि भविष्यमें ऐसा कोई विचार किया गया तो इस मामलेमें दिलचस्पी रखनेवाले संघके सभी पक्षोंको आवेदन करनेका उचित अवसर दिया जायेगा।
इन परिस्थितियोंमें प्रस्तावित भेंटकी अनुमति देनेसे कोई समुचित लाभ होता दिखाई नहीं देता।

इसका मतलब है कि तुरन्त कोई कठोर कदम न उठाये जानेके सिवा भारतीय समाजको अन्य कोई राहत नहीं मिलेगी। इसमें यह भी आश्वासन नहीं दिया गया है कि भविष्यमें इस प्रकारका कोई कदम नहीं उठाया जायेगा। इसके विपरीत भारतीय समाजको नरमीसे यह कह दिया गया है कि वह इसके पालनके लिए तैयार रहे। जैसे मैंने पहले कहा है, बुरा कानून बुरा ही है, चाहे उसे तुरन्त लागू किया जाये या उसे उससे प्रभावित होनेवाले लोगोंके सिरोंपर नंगी तलवारकी तरह लटकाये रखा जाये।

इसके भयानक परिणाम

एक पत्रलेखकने मेरे पास बंगालमें होनेवाले बाल-विवाहों तथा बलात् लागू किये गये वैधव्यपर एक लम्बा लेख भेजा है। इसमें वह कहता है:

आप निश्चित रूपसे जानते होंगे कि हिन्दू समाजकी स्थिति अन्य प्रान्तोंमें यदि बंगालसे बुरी नहीं है, तो अच्छी भी नहीं है। विशेषकर हिन्दू समाजको दलित जातियोंमें बाल-विवाह बहुत होते हैं तथा बाल-विधवाएँ भी बहुत हैं। बंगालमें डोम, चमार, नामशूद्र, कैवर्त आदि वर्गीमें बाल-विवाह आम होते हैं और बाल-विधवाएँ बहुत मिलती हैं। दूसरी ओर बंगालमें हिन्दुओंमें इन्हींकी संख्या सबसे अधिक है। मैं चाहता हूँ कि मुझे समय मिले तो मैं अन्य प्रान्तोंकी स्थितिका भी अध्ययन करके इसी प्रकार आँकड़े तैयार करूँ।