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३५२. पत्र : नानाभाई भट्टको

आश्रम
साबरमती
बुधवार, श्रावण बदी २ [२५ अगस्त, १९२६]

भाईश्री ५ नानाभाई,

आपका पत्र और तार मिले। आशा है, चि० विद्युत अब ठीक होगा। मैं तब तक मौन रखूंगा जबतक भाई विट्ठलराय यहाँ नहीं आ जाते।

भाई रामनारायणने[१] कल मुझे खबर दी कि भाई बल्लूभाई[२] और दीवानने[३] सरकारी मान्यता प्राप्त करनेका निश्चय किया है।[४] इसपर मैंने भाई रामनारायणसे कहा है कि वे, जो विद्यार्थी सातवें वर्गमें पढ़ना चाहें उनके लिए विद्यापीठमें ही एक वर्ग खोल दें। हमें इस सम्बन्धमें अन्ततः समितिसे अनुमति तो लेनी ही होगी। मैंने उनसे कहा है कि तबतक वे किसी खर्चमें न पड़ें। जो पढ़ना चाहें उन विद्यार्थियोंको महाविद्यालयके भवनमें ही पढ़ाना निश्चित किया गया है। यदि आप आ सकें तो एक चक्कर लगा जायें और स्थिति देख जायें।

आपके लिए किसीने एक कतरन भेजी है वह इसके साथ है। मैं नहीं मानता कि उसमें जैसा कहा गया है वैसा आपने कहा होगा अथवा वैसी आपकी मान्यता है।

गुजराती प्रति (एस० एन० १२२५९) की फोटो-नकलसे।

३५३. टिप्पणियाँ

बुद्धिमानीका कदम

प्राणिदया ध्यान प्रचारक संघ, दावानगीर, मैसूरके कार्यालयमें जो खादी भण्डार चलाया जाता है उसके व्यवस्थापकने सूचित किया है कि स्थानीय नगरपालिका परिषदने खादीके आयात परसे चुंगी हटा दी है। हरएक नगरपालिकाको चाहिए कि वह इस उदाहरणका अनुकरण करे। इस प्राचीन उद्योगको पुनरुज्जीवित करनेके लिए नगरपालिकाओंको कमसे-कम इतना तो करना ही चाहिए। मैं हजारों बार कह चुका हूँ और फिर कहता हूँ कि खादीका अर्थ वह कपड़ा है जो हाथकते सुतसे करघेपर बुना गया हो।

३१-२२
  1. रामनारायण वी० पाठक, गुजरातके एक शिक्षाविद्, विद्वान् और आलोचक।
  2. बलवन्तराय पी० ठाकोर।
  3. जीवनलाल दीवान।
  4. अहमदाबादके अपने प्रोप्राइटरी हाई स्कूलके लिए।