पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/३७०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३३४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जहाँ शिक्षक-वर्ग राष्ट्रीय भावनासे ओतप्रोत होकर जी-तोड़ प्रयत्न करता हो, वहाँ मैं समझ सकता हूँ कि विद्यार्थियोंके शिथिल होनेसे भी कोई बड़ा नुकसान नहीं हो सकता। ऐसी अवस्थामें हम शाला चलाते रह सकते हैं और आशा कर सकते हैं कि हम किसी-न-किसी दिन विद्यार्थियोंपर ठीक असर डाल सकेंगे। किन्तु यह लेख लिखते हुए मेरी नजरमें ऐसा एक भी स्कूल नहीं है।"

उक्त अनुच्छेदमें अनर्थ अन्तिम वाक्यका हुआ है। इसका यह अर्थ निकाला गया कि मैं एक भी राष्ट्रीय शालाको चलाते रहने योग्य नहीं मानता। इसी अनुच्छेदमें एक दूसरा वाक्य भी है जो अनुच्छेदका पहला वाक्य है, जो बताता है कि किस प्रकारके राष्ट्रीय स्कूल बन्द हो जाने चाहिए।

जहाँ-कहीं भी अभिभावकों अथवा शिक्षकोंका विरोध हो, वहाँ राष्ट्रीयशाला बन्द ही कर देनी चाहिए।

बम्बईके विनय-मन्दिरके विषयमें और उसी तरह अन्य बहुत-सी राष्ट्रीय शालाओंके विषयमें हमें यह मालूम है कि अभिभावक और शिक्षक राष्ट्रीय भावनाओंके अनुकूल हैं। वे कांग्रेसकी तद्विषयक व्याख्याके अनुसार ही राष्ट्रीय शालाओंको चलाना चाहते हैं। ऐसी शालाओंको बन्द करनेकी बात नहीं है। और यह बतानेके लिए ही मैंने बादके वाक्य लिखे थे कि यदि वहाँके विद्यार्थीगण खादी और इसी तरहकी दूसरी शर्तोंको पूरा करनेसे आग्रहपूर्वक इनकार करते हों तो भी उन स्कूलोंको चलाते रहना चाहिए और इस प्रकार विद्यार्थियोंको सुधरनेका अवसर देना चाहिए। मैंने अनुच्छेदके अन्तमें कहा: "यह लेख लिखते हुए मेरी नजरमें ऐसा एक भी स्कूल नहीं है।" मेरा आशय यह था कि जहाँ अभिभावकों और शिक्षकोंके अनुकूल तथा प्रयत्नशील होते हुए भी विद्यार्थीगण हठपूर्वक खादी इत्यादिसे सम्बन्धित शर्तोंका पालन न करते हों ऐसी एक भी राष्ट्रीय शाला मेरी निगाहमें नहीं है। यदि किसीकी निगाहमें हो तो मैं अवश्य उसका नाम-धाम जानना चाहूँगा। बम्बईके राष्ट्रीय-विनय मन्दिरके विषयमें तो मैं यही जानता हूँ कि वहाँके विद्यार्थी भी राष्ट्रीय भावनाके अनुकूल हैं। वे खादीका उपयोग करते हैं और सूत कातते हैं। ऐसी राष्ट्रीय शालाओंको बन्द नहीं किया जा सकता। मैं आशा करता हूँ कि सभी सज्जन इस प्रकारकी शालाओंकी मदद करते रहेंगे।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २२-८-१९२६