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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। पुनर्विवाह करनेवाली चन्द विधवायें, कभी भी कुमारियोंकी विशाल संख्याको अविवाहित रहनेपर विवश नहीं कर पायेंगी। खैर, यदि कभी ऐसी समस्या उपस्थित भी होगी तो इसका कारण आजका बाल-विवाह ही होगा। इसकी समुचित दवा तो बाल-विवाहकी रोक ही हो सकती है।

अल्पवयस्का विधवाके विषयमें प्रेम, गृहस्थ जीवनकी पवित्रता आदि बातोंका नाम न लेना ही अच्छा होगा।

परन्तु पत्रलेखकने तो मेरी बात बिलकुल ही नहीं समझी। मैंने सभी विधवाओंके विवाहका समर्थन कभी नहीं किया। सर गंगारामके संकलित आँकड़े, जिनका इस पत्रमें सारांश दिया गया था, १५ वर्षसे कम उम्रकी विधवाओंके हैं। ये गरीब दुखिया पतिव्रतधर्म क्या जानें? प्रेम उनके लिए अज्ञात वस्तु है। सही बात तो यह है कि उनका विवाह कभी हुआ ही नहीं माना जा सकता। विवाहको यदि सचमुच ही धार्मिक संस्कार बनाना है, इसके द्वारा व्यक्तिको एक नये जीवनमें प्रवेश कराना है तो जिनका विवाह होता है उन लड़कियोंको पूर्ण विकसित, परिपक्व होना चाहिए। जीवन-भरका साथी चुननेमें उनका भी कुछ हाथ होना चाहिए और वे जो काम करने जा रही हैं, उसका फलाफल भी उन्हें समझना चाहिए। हम बच्चोंके ऐसे संयोगको विवाहका नाम देकर और उस तथाकथित पतिके मर जानेपर उस बालिकाको आजीवन वैधव्य भोगनेपर मजबूर करके ईश्वर और मनुष्यके प्रति पाप करते हैं।

मेरा विश्वास है कि सच्ची हिन्दू विधवा एक रत्न है। वह मनुष्य जातिको हिन्दूधर्मकी एक अमूल्य भेंट है। रमाबाई रानडे ऐसी ही थीं। परन्तु बाल-विधवाओंका अस्तित्व हिन्दूधर्मके माथेपर एक ऐसा कलंक है, जिसकी कालिमाको हिन्दू समाजमें रमाबाई-जैसी बहनोंका अस्तित्व भी किसी तरह कम नहीं कर सकता।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १९-८-१९२६

३३८. टिप्पणियाँ

नगरपालिकाकी शालाओंमें चरखे

लखनऊ नगरपालिकाकी पाठशालाओंमें १०८ लड़कियाँ और ४१ लड़के चरखे चला रहे हैं। लड़कियोंकी शालाओंमें ९३ और लड़कोंकी शालाओंमें १५ चरखे हैं। प्रतिमास लड़कियाँ २७ तोला और लड़के ४ तोला सूत कातते हैं। नगरपालिकाको फी चरखा दो रुपया महीना खर्च करना पड़ता है। शिक्षा विभागके अधीक्षकका विचार है कि इतना काम, यद्यपि कुछ विशेष तो नहीं, परन्तु शुरू-शुरूकी दृष्टिसे काफी सन्तोषजनक है। इसे सन्तोषजनक इसी अर्थमें कह सकते हैं कि कुछ न होनेसे कुछ होना अच्छा। परन्तु मेरी समझमें तो सूत इतना कम है कि सुनकर हँसी आती है; और फी चरखेपर खर्च भी बेहिसाब है। शुरूमें जितना लगा दिया उसके बाद फिर अधिक खर्च तो होना ही नहीं चाहिए। सूत कैसा होता है— इसके विषयमें