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३३७. दलित मानवता

दलित मनुष्योंमें केवल अस्पृश्य ही ऐसे नहीं जिनपर अत्याचार होता है। हिन्दू समाजमें अल्पवयस्का विधवापर भी कुछ कम अत्याचार नहीं होता। बंगालसे एक सज्जन लिखते हैं :

मुसलमानोंमें विधवा-विवाहपर कोई रोक नहीं है; किन्तु पुरुषोंको चार-चार स्त्रियों तकसे विवाह करनेका अधिकार है। सच पूछिए तो अधिकांश मुसलमानोंके एकाधिक पत्नियाँ हैं। इस प्रकार एक भी मुसलमान मर्द अविवाहित नहीं रहता। तो यह क्या सच नहीं कि जहाँ विधवा-विवाहपर कोई रोक नहीं होती, वहाँ पुरुषोंसे स्त्रियोंको संख्या अधिक होती है? या दूसरे शब्दोंमें, जिस समाजमें विधवा-विवाह प्रचलित है क्या उसमें बहुपत्नीत्वका अधिकार भी देना ही चाहिए?

यदि हिन्दुओंमें विधवा-विवाहका प्रचार हो जाये तो नवयुवती विधवायें क्या युवकोंको लुभाकर उनसे विवाह न कर लेंगी और तब फिर कुमारियोंके लिए वर ढूंढ़ना कठिन क्या असम्भव ही नहीं हो जायेगा?

तो फिर अगर हिन्दू पुरुषोंको एकाधिक विवाह करनेका अधिकार न दिया तो आज जो पाप विधवायें करती हैं, या जिनका दोष उनपर लगाया जाता है वैसे ही पाप क्या कुमारियाँ भी नहीं करेंगी? मैं जानबूझकर प्रेमकी, संयमशील गृहस्थ जीवनको, पतिव्रत धर्मकी या ऐसी ही उन और बातोंकी चर्चा नहीं करना चाहता, जिनपर विधवा-विवाहका समर्थन करते समय विचार करना होगा।

विधवा-विवाह रोकनेके उत्साहमें पत्रलेखकने अनेक बातोंकी उपेक्षा कर दी है। मुसलमानोंको एकाधिक पत्नी रखनेका अधिकार है सही, परन्तु अधिकांश मुसलमानों के यहाँ होती एक ही पत्नी है। मालूम होता है कि पत्रलेखकको शायद इसका पता नहीं कि दुर्भाग्यवश हिन्दुओंमें बहुपत्नीत्वकी मनाही नहीं है। सभी जानते हैं कि ऊँची श्रेणीके हिन्दू एकाधिक स्त्रियोंसे विवाह करते रहे हैं। बहुतसे राजाओंने तो न मालूम कितने विवाह किये हैं। पत्रलेखक यह बात भी भूल गये हैं कि केवल ऊँची श्रेणीके हिन्दुओंमें ही विधवा-विवाहकी मनाही है। सबसे नीची श्रेणीके, चतुर्थ वर्णके बहुसंख्यक लोगोंमें, विधवायें आमतौरपर पुनर्विवाह करती हैं और उसका कभी कोई बुरा परिणाम नहीं हुआ। यद्यपि उन्हें एकसे अधिक पत्नियोंसे विवाह करनेकी पूरी स्वतन्त्रता है, परन्तु साधारणतः वे एक समयमें एक ही सहचरीसे सन्तुष्ट रहते हैं। विधवायें सभी युवकोंपर कब्जा कर लेंगी और कुमारियोंके लिए वर नहीं मिलेंगे, इस विचारसे लगता है कि पत्रलेखकमें विवेकका नितान्त अभाव है। युवतियोंकी पवित्रताके विषयमें इतनी अधिक चिन्तासे लेखकके रोगी दिमागका ही परिचय मिलता