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अनीतिकी राहपर— ८

जा सकता। यदि किया जायेगा तो मृत्यु हो जायेगी। इस तरह इसके सहज उद्भवकी प्रक्रिया भी समझी जा सकती है।

शक्तिसृजनकी शारीरिक प्रक्रिया बतानेके बाद लेखक कहता है:

सभ्य जातियोंमें अगली पीढ़ीको जन्म देनेके लिए जितना सम्भोग अपेक्षित होता है, ज्यादातर उससे ज्यादा किया जाता है। और यह शरीरके आन्तरिक सृजनकी प्रक्रियाको हानि पहुँचाकर भी जारी रखा जाता है। इसका परिणाम होता है रोग, मृत्यु और अनर्थ।

उस मनुष्यको, जो हिन्दू दर्शनको तनिक भी जानता है, श्री हेयरके निबन्धके इस अनुच्छेदको समझने में कठिनाई नहीं होगी :

शक्तिको पुनरुत्पत्तिकी प्रक्रियाका स्वरूप यांत्रिक नहीं है और हो भी नहीं सकता, बल्कि वह जीव-सृष्टिम कोषके प्रथम विभाजनकी भाँति जैविक व्यापार है। इसका अर्थ यह है कि वह कर्त्तामें चेतनता और संकल्पशक्ति होनेकी सूचना देता है। प्राणतत्व किसी विशुद्ध यांत्रिक प्रक्रियासे पृथक् विभक्त होता है, यह बात अकल्पनीय है। यह सच है कि ये महत्त्वपूर्ण प्रक्रियाएँ हमारे वर्तमान ज्ञानकी सीमासे इतनी परे हैं कि हमें वे मनुष्य या प्राणियोंके संकल्पसे अनियंत्रित जान पड़ती हैं। किन्तु यदि हम एक क्षण सोचें तो हमें मालूम हो जायेगा कि जिस प्रकार पूर्ण विकसित संकल्पवाला मनुष्य अपनी बाह्य गतिविधियों और क्रियाओंका संचालन अपनी बुद्धिके अनुसार करता है— और बुद्धिका काम यही है— उसी प्रकार शरीरके क्रमिक गठनकी प्रारम्भिक प्रक्रियायें, स्थितियोंसे उत्पन्न मर्यादाओंके भीतर, अवश्य ही एक प्रकारकी चेतना द्वारा प्रेरित एक प्रकारके संकल्पसे संचालित होनी चाहिए। मनोविज्ञानके पंडित इससे अबतक परिचित हो चुके हैं और इसे "अचेतन मन" कहते हैं। यह अचेतन मन हमारा एक अंग है। हाँ, उसका हमारी सामान्य दैनिक विचार-क्रियासे सम्बन्ध नहीं होता, किन्तु वह अपना कार्य नितान्त जागरूक और सतर्क रहकर करता है यहाँतक कि हमारी चेतनाकी तरह यह एक क्षणके लिए भी प्रसुप्त नहीं होता।

हम वासनाकी तृप्तिके लिए जो भोग करते हैं उससे हमारे शरीरके इस अधिक स्थायी भाग— हमारे अचेतन मनको जो हानि पहुँचती है उसकी पूर्ति लगभग अशक्य है। उसको कौन माप सकता है।

प्रजोत्पत्तिका अन्तिम दण्ड मृत्यु है। मैथुन-क्रिया वास्तवमं पुरुषके लिए विनाशक है (या मृत्युकी ओर ले जाती है) और स्त्रीमें यह विनाश शिशु-जननकी क्रियाके रुपमें प्रकट होता है।

इसीलिए लेखक कहता है:

जो लोग पूर्ण ब्रह्मचारी या लगभग ब्रह्मचारी हैं उनको शक्ति, जीवट और नीरोग्यता मिलती है। जीवकोषोंको शरीरके पुननिर्माणके कार्य से हटाकर