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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गये उद्यमको बीचमें छोड़ देना और नई सूझबूझका अभाव ये समस्त दोष, जिन्हें हम प्राय: देखते हैं, बहुत-कुछ हमारी अत्यधिक विलासिताके परिणाम हैं। मुझे आशा है, नवयुवक इस भ्रमपूर्ण धारणाके शिकार नहीं बनेंगे कि यदि गर्भ न ठहरने दिया जाये तो सम्भोग अपने आपमें किसी भी तरहकी दुर्बलता पैदा नहीं करता। असलियत तो यह है कि सम्भोगके परिणामोंको भलीभाँति समझकर और उसका दायित्व ग्रहण करनेके लिये अपने मनको तैयार करके जो सम्भोग कर्म किया जाता है उससे शक्तिका उतना ह्रास और थकानकी सम्भावना नहीं है जितनी कि गर्भनिरोधके कृत्रिम साधनोंसे लेस होकर सम्भोग कर्म करनेसे है।

"मन एवं मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः"

यदि हम यह मानने लग जायें कि विषय-वासनामें लिप्त होना आवश्यक, हानिरहित और पापरहित है तब तो हमें उसपर अंकुश रखनेकी जरूरत ही नहीं मालूम होगी और हमारे अन्दर उसके प्रतिरोधकी शक्ति ही नहीं बच रहेगी। इसके विपरीत, यदि हम यह सोचनेकी आदत डाल लें कि इस प्रकार विषय-वासनामें लिप्त होना हानिकर, पापपूर्ण और अनावश्यक है और उसपर नियंत्रण रखा जा सकता है, तो हमें यह मालूम होगा कि आत्मसंयम बहुत सरल है। मदोन्मत्त पश्चिमने हमारे सामने नये सत्यों और तथाकथित मानवीय स्वतन्त्रताके आवरणमें निरंकुश भोगवादकी जो तीव्र मदिरा प्रस्तुत की है उससे हमें सावधान रहना चाहिए। इसके विपरीत, यदि हमारे पूर्वजोंका प्राचीन ज्ञान हमें घिसा-पिटा और पुराना लगता हो तो हमें पश्चिमके बुद्धिमान लोगोंके बहुत अनुभवोंमें से छन-छनकर आनेवाला उनका संयमित स्वर सुनना चाहिए।

चार्ली एन्ड्रयूजने मुझे विलियम लोफ्ट्स हेयरका 'वंशवृद्धि' और 'शक्तिसृजन' (जेनेरेशन एण्ड रिजेनेरेशन) ज्ञानपूर्ण लेख भेजा है। यह लेख मार्च १९२६ 'ओपन कोर्ट' में छपा है । यह एक वैज्ञानिक निबन्ध है जिसमें विषयका बहुत सूक्ष्म विवेचन किया गया है। उन्होंने बताया है कि शरीर-मात्रमें दो कार्य होते रहते हैं, एक ‘शरीरके निर्माणके लिए आन्तरिक शक्तिसृजन और दूसरा वंशको कायम रखनेके लिए बाह्य सृजन इन प्रक्रियाओंको उन्होंने क्रमशः शक्तिसृजन और वंशवृद्धि नाम दिया है।

शक्तिसृजन आन्तरिकसृजन व्यक्तिके लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है, इसलिए वह आवश्यक और बुनियादी है। वंश-वृद्धिको प्रक्रिया कोष्ठोंकी अनावश्यक वृद्धिके कारण होती है इसलिए वह गौण है।··· इस प्रकार यहाँ जीवनका नियम यह है कि पहले शक्तिसृजनके लिए और फिर वंशवृद्धिके लिए जीवन-कोष्ठोंका पोषण किया जाये। यदि शरीरमें कमी हो तो शक्तिसृजनको प्रथम स्थान देना और वंशवृद्धिको बन्द कर देना आवश्यक होता है। इस प्रकार, हम यह देख सकते हैं कि वंशवृद्धिको बन्द करनेकी बातका आरम्भ कैसे हुआऔर फिर यह समझ सकते हैं कि वह मनुष्यकी ब्रह्मचर्य और सामान्यतः पूर्ण निग्रहकी अवस्थाओंतक कैसे पहुँचा। आन्तरिक सृजन कभी बन्द नहीं किया