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अनीतिकी राहपर— ८

में बेहिसाब बच्चे पैदा होते हैं यह सिद्ध करनेके लिए एक-दो व्यक्तियोंके ही उदाहरण काफी नहीं होंगे। मैंने देखा है कि भारतमें इन तरीकोंकी हिमायत दो प्रकारके व्यक्तियोंके लिये की जाती है। इनमें से एक हैं विधवायें और दूसरी कच्ची उम्रकी पत्नियाँ। इस तरह विधवाओंके मामलेमें उद्देश्य गुप्त सम्भोगको रोकना न होकर नाजायज बच्चोंके जन्मको रोकना ही है। कच्ची उम्रकी पत्नियाँ भी गर्भाधानसे डरती हैं और इसलिए वे इनका प्रयोग करती हैं। अर्थात् यहाँ भी उनके प्रयोगका कारण कच्ची उम्र की लड़कियोंके साथ सहभोगको रोकना नहीं है। रह जाता है रोगी, दुर्बल और पुंसत्वहीन नवयुवकोंका वर्ग। इस वर्गके लोग अपनी पत्नियों या पर-पत्नियोंसे अनाचार करना चाहते हैं और अपने उन कर्मोके परिणामोंसे बचना चाहते हैं, जो वे जानते हैं कि पापपूर्ण हैं। मैं यह कहनेकी वृष्टता कर सकता हूँ कि भारतीय मानवता के विशाल समुदायमें ऐसे स्त्री-पुरुषोंकी संख्या अत्यंत ही नगण्य है जो जीवनीशक्तिसे भरे-पूरे होनेपर भी सम्भोगके इच्छुक होते हुए भी बच्चे पैदा करनेके दायित्व भारसे कतराते हों। इन चन्द लोगोंका दृष्टान्त पेश करके एक ऐसी प्रथाको उचित सिद्ध करने और उसकी हिमायत करनेका प्रयत्न नहीं किया जाना चाहिए जो यदि भारतमें आम हो गई तो देशके युवकोंका निश्चय ही सर्वनाश कर देगी। एक अत्यंत ही कृत्रिम, अस्वाभाविक किस्मकी शिक्षाने हमारे राष्ट्रके नवयुवकोंका शारीरिक और मानसिक तेज हर लिया है। हममें से बहुत से बाल-विवाहोंकी सन्तान हैं। स्वास्थ्य और सफाईके नियमोंकी अवहेलनाके कारण हमारे शरीर उतने शक्ति सम्पन्न नहीं रह गये हैं और अनुपयुक्त और अपर्याप्त रूपसे पोषक आहारने, जिसमें तीक्ष्ण प्रभावकारी मसाले पड़े होते हैं, हमारे पाचनतंत्रको बेकार कर दिया है। हमें गर्भनिरोधके कृत्रिम उपकरणों और ऐसे सहायक साधनोंके प्रयोगकी शिक्षाकी आवश्यकता नहीं जिनके सहारे हम अपनी पशुवृत्तियोंको तृप्त कर सकें, बल्कि हमें ऐसी शिक्षाकी आवश्यकता है जिससे हम अपनी इस भोगलिप्साको संयत, नियंत्रित कर सकें। काफी बड़ी संख्या में लोगोंका पूर्ण ब्रह्मचर्यको अपना लेना ही आवश्यक है। आवश्यकता तो इस बातकी है कि हमें अपनी कथनी और करनी दोनोंके जरिए यह शिक्षा दी जाये कि अपने आपको मानसिक एवं शारीरिक दृष्टिसे निस्तेज होनेसे बचाने के लिए यह परमावश्यक है कि ब्रह्मचर्य व्रत लिया जाये और ब्रह्मचर्यको निभाना सर्वथा व्यावहारिक तथा सम्भव है। राष्ट्रकी मानवताको सर्वथा निस्तेज हो जानेसे बचाने के लिये यह बिलकुल जरूरी है कि ढोल पीट-पीटकर यह बतलाया जाये कि हमें अपनी इस सीमित-सी जीवनी शक्तिको संरक्षित रखना चाहिए और उसकी अभिवृद्धि करनी चाहिये जिसे हम प्रतिदिन क्षय कर रहे हैं। हमें अपने यहाँकी युवती विधवाओंसे यह कह देनेकी जरूरत है कि वे छुपकर पाप न करें, बल्कि साहसके साथ बाहर आयें और खुल्लम-खुल्ला कहें, हमारा विवाह कर दो। उनको इस तरहकी माँग करनेका उतना ही हक है जितना युवा विधुरोंको। ऐसा लोकमत बनानेकी जरूरत है जिसमें बाल-विवाह असम्भव हो जाये। अनिश्चय, कठिन परिश्रमके कार्योंमें लगातार जुटे रहनेकी अनिच्छा, कठिन परिश्रमवाले कार्य सम्पन्न करनेकी शारीरिक अक्षमता, उत्साहपूर्वक प्रारम्भ किये

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