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३३५. अनीतिकी राहपर—८

अब यह लेखमाला समाप्त की जा सकती है। श्री ब्यूरोने माल्थसके सिद्धान्तका जो विवेचन किया है उसे यहाँ देना आवश्यक नहीं। माल्थसके सिद्धान्तसे उस समयके लोग चौंक उठे थे। माल्थसने कहा था कि आबादी हदसे ज्यादा बढ़ती जा रही है और मानवजातिको समाप्त होने से बचाने के लिये सन्तानोत्पत्तिको नियंत्रित किया जाना चाहिए। उसने इसके लिए उपाय बताया था। माल्थसके सिद्धान्तके नये प्रवक्ता संयमकी बात नहीं करते। वे भोगलिप्साके परिणामोंसे बचनेके लिए रासायनिक और यांत्रिक साधनोंकी सिफारिश करते हैं। श्री ब्यूरो नैतिक साधनोंसे, अर्थात् आत्मसंयमसे, बच्चोंकी पैदाइशको नियंत्रित रखनेका सिद्धान्त स्वीकार करते हैं और साथ ही जैसा कि हम देख चुके हैं, वे रासायनिक या यांत्रिक साधनोंको अस्वीकार करते हैं और उनकी तीव्र निन्दा करते हैं। लेखकने इसके बाद श्रमिक वर्गकी दशा और उनमें बच्चोंकी पैदाइशके अनुपातका विवेचन किया है, और अन्तमें वैयक्तिक स्वतंत्रताके और मनुष्योंके नामपर बरती जानेवाली आजकी हद दर्जेको अनैतिकताको रोकनेके उपायोंकी चर्चाके साथ पुस्तक समाप्त की है। उनका सुझाव है कि लोगोंको उचित राह दिखाने और उसपर चलानेका संगठित प्रयत्न किया जाना चाहिए। वे कहते हैं कि इस सम्बन्धमें कानून बनाकर राज्य भी मदद कर सकता है, किन्तु वे इसका अन्तिम उपाय तो लोगोंके जीवनमें धर्मके प्रति श्रद्धा उत्पन्न करना ही मानते हैं। नैतिक दिवालियेपनकी रोक या उसका नियंत्रण साधारण उपायोंसे नहीं हो सकता, और जब अनैतिकताको एक गुण माना जाने लगा हो और नैतिकता कमजोरी, अन्धविश्वास या अनीतितक कही जाती हो, तब तो यह कदापि सम्भव नहीं है। गर्भ-निरोधके कृत्रिम उपकरणोंके बहुतसे हिमायती बिना झिझक संयमकी निन्दा करते हैं, उसे अनावश्यक और हानिकरतक बताते हैं। इन स्थितियोंमें धर्मकी सहायता लेना ही कानूनन जायज इस बुराईको रोकनेका एकमात्र प्रभावकारी उपाय है। यहाँ धर्मको संकुचित और सम्प्रदायगत अर्थमें नहीं लेना चाहिए। जीवन व्यक्तिगत हो या सामूहिक, दोनोंमें ही सच्चा धर्म बड़ी जबर्दस्त क्रान्ति लानेका साधन हो सकता है। धार्मिक जागृतिमें क्रान्ति, रूपान्तरण और पुननिर्माण सम्मिलित रहते हैं और श्री ब्यूरोका मत है कि फ्रांस आज जिस घोर नैतिक संकटमें दिन-दिन अधिक फँसता जा रहा है उससे उसे कोई ऐसी ही परिवर्तनकारी शक्ति बचा सकती है। किन्तु अब हम लेखक और उसकी पुस्तककी बात यहीं छोड़ देंगे। फ्रांस और भारतकी स्थिति समान नहीं है। हमारी समस्या कुछ भिन्न है। भारतमें गर्भ निरोधके कृत्रिम उपकरणोंका प्रयोग आम नहीं हुआ है। उनका प्रयोग मुश्किलसे शिक्षित वर्गों तक ही है और वह भी बहुत कम । मेरा तो अपना यही मत है कि यहाँ भारतमें एक भी ऐसी स्थिति सिद्ध नहीं की जा सकती जिसके कारण इन उपकरणोंका प्रयोग आवश्यक माना जाये। क्या मध्यवर्गके लोग बहु-सन्ततिके कष्टसे पीड़ित हैं? मध्यवर्ग-