३२२. पत्र: घनश्यामदास बिड़लाको
श्रावण शुक्ल ४, [१२ अगस्त, १९२६ ][१]
आपका खत मीला है। मैं तो खूब जानता हूं कि श्री मालवीजी और श्रद्धानन्दजीके सिवाय हिंदु मुसलमान ऐक्य असंभावित हि है। मैं तो केवल मार्गदर्शक हि रहना चाहता हुं और छोटे २ झगड़े हो जांय उसमें कुछ कर सकुं तो करना चाहता हुं— मेरा कार्य भंगीका हैं— साफ करना और रखनेकी कोशीष करना। जब कुछ भी सुलहनामा बनानेका समय आवेगा तब तो अवश्य श्री मालवीजी ई०की सम्मतिकी पूरी आवश्यकता रहवेगी।
आपका,
मोहनदास गांधी
सौजन्य : घनश्यामदास बिड़ला
३२३. पत्र : अनन्त मेहताको
आश्रम
साबरमती
१३ अगस्त, १९२६
आपका पत्र मिला और साथ ही आपके सुझावोंके मुताबिक सत्याग्रह आरम्भ करनेके लिए कोषकी शुरुआतके रूपमें अहमदाबादके डाकखानेके नाम बीस शिलिंगका एक 'क्रास' किया हुआ पोस्टल ऑर्डर भी। मैं आपके पत्रके बारेमें किसी-न-किसी रूपमें शायद 'यंग इंडिया' में लिखूंगा। पर मैं आपको इतना बतला दूं कि आपने यहाँकी वर्तमान स्थिति जाने बिना ही पत्र लिखा है। आपके भेजे पोस्टल ऑर्डरका भुगतान अहमदाबादमें ही लिया जा सकता था; इसलिए वह मुझे भुनाना तो पड़ा है; लेकिन मैं अभी तत्काल सत्याग्रह शुरू करने में असमर्थ हूँ और आपके सुझाये हुए
- ↑ हिन्दू-मुस्लिम झगड़ोंमें मार्गदर्शन करनेकी इच्छाकी अभिव्यक्तिसे लगता है कि यह पत्र १९२६ में लिखा गया होगा।