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३२०. पत्र : गोकुलभाई भट्टको

आश्रम,
साबरमती
बृहस्पतिवार, श्रावण सुदी ४, १२ अगस्त, १९२६

भाईश्री ५ गोकुलभाई,

आपका पत्र मिला। आपने जिस अनुच्छेदके बारेमें लिखा है, मैंने उसे दो-तीन बार पढ़ा है। आपको उक्त सज्जन पैसा देनेसे क्यों इनकार करते हैं, मैं यह बात समझ नहीं सकता। इन सज्जनने मेरे किस वाक्यसे यह निष्कर्ष निकाला है कि आपका स्कूल बन्द कर दिया जाना चाहिए? माता-पिता और शिक्षकके राष्ट्रीय भावनासे युक्त होनेके बावजूद विद्यार्थी शिथिल हैं, क्या यह बात आपके स्कूलपर लागू होती है? मेरे विचारानुसार तो लागू नहीं होती। माता-पिता और शिक्षक विद्यार्थियोंको खादीमय बनाना चाहें; किन्तु विद्यार्थी फिर भी खादी न पहनें, क्या ऐसा कहीं होता है? क्या आपके यहाँ विद्यार्थी खादी नहीं पहनते? जहाँतक मैं समझ सका हूँ, आपके यहाँ तो अधिकांश विद्यार्थी खादी पह्नते हैं। फिर उक्त बात आपपर किस तरह लागू होती है? और यदि विद्यार्थी खादी नहीं पहनते हैं तो भी मैं नहीं समझता कि आपके स्कूलके सम्बन्धमें ऐसा कहा जा सकता है और यदि यह सच हो तो भी उक्त वाक्यके अनुसार उसे चालू रखा जाना चाहिए। क्या यह बात स्पष्ट नहीं है? आप इस पत्रका जो उपयोग करना चाहें, कर सकते हैं। क्या मुझे फिर भी कुछ लिखनेकी जरूरत है? यदि हो तो मुझे समझायें।

बापू

श्री गोकुलभाई दौलतराम भट्ट
बम्बई

गुजराती पत्र (एस० एन० १२२४८) की माइक्रोफिल्मसे।