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३१६. पत्र. ए० सेन और पी० बोसको

आश्रम
साबरमती
१२ अगस्त, १९२६

प्रिय बहनो,

पत्रके लिए मैं आपका आभारी हूँ।[१] पबना और अन्य स्थानोंकी दुःखद घटनाओं के बारेमें मेरी जानकारी सामान्य ही है, अधिक नहीं।[२] मुझे समाचारपत्रोंपर अविश्वास है; इसलिए मैं उनमें छपे विवरण पढ़ता ही नहीं हूँ। इसलिए यदि आप अपने पासकी सारी प्रामाणिक जानकारी मुझे भेज सकें तो आपकी कृपा होगी।

आपने मुझसे 'यंग इंडिया' के पृष्ठोंमें जिस प्रश्नका उत्तर देनेका अनुरोध किया है, वह प्रश्न[३] कुछ नाजुक-सा है। मैं और आप दोनों एक ही उद्देश्य लेकर चल रहे हैं और मुझे यह भरोसा नहीं है कि ऐसे नाजुक प्रश्नपर सार्वजनिक रूपसे चर्चा करनेसे हमारे उस उद्देश्यको हानि नहीं पहुँचेगी। अपने विश्वासी मित्रोंसे मुझे जो विवरण मिला है, उससे तो यही पता चलता है कि जहाँ-जहाँ बलात्कार हुए हैं वहाँ उनके पीछे पुरुषोंकी कायरता ही विशेष कारण थी, स्त्रियोंकी शारीरिक प्रतिरोधकी असमर्थता इतनी नहीं। आपने जिस प्रकारकी एक संस्था बनानेका सुझाव दिया है उसके उपयुक्त होनेमें सन्देह है। यह नहीं कि मैं अन्य कोई साधन न रहनेपर भी स्त्रियों द्वारा कटार या तमंचोंका प्रयोग किये जानेमें पाप समझता हूँ। मेरे सन्देहका कारण यह है कि ऐसे अधिकांश मामलोंमें इस प्रकारकी आत्मरक्षा नितान्त निकम्मी सिद्ध होती है और फिर हमारे देशकी स्त्रियोंको किसी बड़ी संस्थामें कटार या तमंचा चलाने में सिद्धहस्त होते-होते युग लग जायेंगे। इसमें सबसे जल्दी सफलता पानेका तरीका शायद यही है कि स्त्रियाँ पुरुषोंको शर्मिन्दा करें और इस प्रकार उन्हें इस बातके लिए तैयार करें कि चाहे कुछ भी हो, अपनी स्त्रियोंकी रक्षाके अपने कर्त्तव्यका पालन वे अवश्य करें। लेकिन कोई भी कदम उठानेसे पहले यह जरूरी है कि आप

  1. इसपर ४ अगस्त, १९२६ की तिथि पड़ी थी। इसमें पत्र-लेखिकाओंका पता वही था जो गांधीजीने २९-७-१९२६ के यंग इंडिया में लिखा था।
  2. पत्र-लेखिकाओंने बंगालके गाँवोंमें मुसलमान गुण्डों द्वारा हिन्दू स्त्रियोंपर किये गये बलात्कारोंकी घटनाओंका उल्लेख किया था। और मॉडर्न रिव्यूके सम्पादक रामानन्द चटर्जी द्वारा अपनी बंगला पत्रिका प्रवासीमें उल्लिखित इस वाक्यका जिक्र किया गया था कि मुझे आश्चर्य है कि गांधीजीने बंगालमें इतने दिन रहने और लम्बा दौरा करनेके बाद भी बंगालकी पीड़ित स्त्रियों के बारेमें एक शब्द भी क्यों नहीं कहा ( एस० एन० १२३७८) ।
  3. प्रश्न यह था: “जब ऐसा काण्ड होने जा रहा हो, तब महिलाएँ क्या करें और क्या उनको बचपनसे ही व्यायाम नहीं करना चाहिए और ऐसे गुण्डोंसे अपनी रक्षा करना क्यों नहीं सीखना चाहिए?