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राष्ट्रीय शिक्षाके क्षेत्रमें एक अगुआ

उसका हित प्रजाके हितके विरुद्ध है या उसकी स्थिति प्रजाकी इच्छाके विरुद्ध है। इसलिए राष्ट्रीय उन्नतिके लिए स्वराज्य परमावश्यक है। इसीलिए श्रीमती बेसेंटने भी जोर देकर कहा है कि स्वराज्यके बिना हिन्दू-मुसलमान ऐक्य लगभग असम्भव ही है। और दुर्भाग्यसे हमारे लिये दिन-प्रतिदिन यह स्पष्ट होता जा रहा है कि हिन्दू-मुस्लिम एकताके बिना भी स्वराज्य असम्भव है। खैर में तो यह सब होनेपर भी इतना आशावादी हूँ कि मेरा यह विश्वास बना हुआ है कि हमारे प्रयत्नोंके बिना भी एकता होकर रहेगी, क्योंकि मैं लोकमान्यके उस आदर्श वाक्यमें पूरा और पक्का विश्वास करता हूँ कि 'स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर रहूँगा'। जहाँ मनुष्यकी कोशिश बेकार हो जाती है, वहाँ ईश्वरकी कृपा फलीभूत हो सकती है, क्योंकि उसकी सरकार फूटनीतिपर नहीं चलती।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १२-८-१९२६

३१२. राष्ट्रीय शिक्षाके क्षेत्रमें एक अगुआ

आचार्य बीजापुरकर,[१] जिनकी मृत्युकी खबर गत सप्ताह दी गई थी, राष्ट्रीय शिक्षाके क्षेत्रमें एक अगुआ था। कहा जा सकता है कि उन्होंने अपना समस्त जीवन राष्ट्रीय शिक्षाके लिए अर्पित कर दिया था। उन्होंने इसकी खातिर अनेक कष्ट सहन किये थे। वे तलेगाँवकी शिक्षण संस्थाकी आत्मा थे। उन्होंने छात्रोंके लिए मराठीकी पाठ्यपुस्तकें लिखने में बड़ी मेहनत की थी। उन्हें ढोंग, छल-कपट और झूठसे बहुत घृणा थी। वे सादगीकी मूर्ति थे, जैसे कि सभी महाराष्ट्रीय कार्यकर्ता बहुधा हुआ करते हैं। उनके छात्र उनसे बेहद प्यार करते थे और वे भी उनसे ऐसा ही स्नेह करते थे जैसे पिता अपने बच्चोंसे करता है। मैं स्वर्गीय आचार्य महोदयके परिवारके सदस्यों और नके प्रिय अनुयायियोंके प्रति संवेदना प्रकट करता हूँ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १२-८-१९२६
  1. आचार्यविष्णु गोविन्द बीजापुरकर ( १८६३-१९२६); राष्ट्रीय शिक्षाके प्रचारक।