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सत्याग्रहकी विजय

सन्तुष्ट करना ही पड़ता है, किन्तु मनुष्यका यही तो एक विशिष्ट गुण है कि वह प्रकृति या अपने शरीरकी माँगोंकी प्रबलतासे अपने आपको अधिकाधिक स्वतन्त्र बनाता जाये; और उसके विकासका प्रत्यक्ष लक्ष्य भी यही मालूम पड़ता है। बच्चा स्थूल आवश्यकताओंपर नियन्त्रण रखना सीखता है और वयस्क अपनी वासनाओंपर। पूर्ण सद्शिक्षाकी यह योजना कोरी कल्पना नहीं है और न वह व्यावहारिक जीवनक्षेत्रसे परे ही है। आखिर हमारे मानसिक अस्तित्वका लक्ष्य यही है तो हम अपनी उन वैयक्तिक वृत्तियोंके अधीन रहें जिनको हम अपनी इच्छाशक्ति या संकल्प कहते हैं। लोग 'स्वभाव' की आड़ लेते हैं; किन्तु यह 'स्वभाव' प्रायः दुर्बलताका दूसरा नाम है। जो मनुष्य वस्तुतः शक्तिशाली होता है वह उचित समयपर अपनी शक्तियोंका उपयोग करना जानता है।"

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १२-८-१९२६

३११. सत्याग्रहकी विजय

पण्डित मालवीयजीकी विजय राष्ट्रकी विजय है। यद्यपि आज हम फूट और पस्तहिम्मतीके शिकार हैं, परन्तु पण्डितजीने दिखला दिया है कि अभी भी हममें अधिकसे-अधिक शक्तिशाली साम्राज्यकी ताकतको चुनौती देनेका साहस है। हिन्दुस्तानके एक इतने पुराने, सम्माननीय तथा विख्यात नेताके विरुद्ध गैरसंजीदगीसे ऐसा नोटिस निकालना, अपनी सत्ताके मदका प्रदर्शन करना ही था। चलिए, थोड़ी देरके लिए हम मान लेते हैं कि मालवीयजीके कलकत्ता जानेसे सरकारका सशंकित होना इसलिए उचित था कि वह शान्ति स्थापनाके लिए प्रयत्नशील थी; फिर भी यह तो कहना ही पड़ेगा कि हिन्दुस्तानमें मालवीयजी-जैसे प्रतिष्ठित पुरुषके साथ ऐसा बर्ताव अनुचित ही है। यदि वहाँके कार्यकारी गवर्नर मालवीयजीको एक निजी पत्र लिख देते या उन्हें बातचीतके लिए बुलाते और सारे सबूत सामने रखकर उन्हें समझा देते कि इस समय आपको कलकत्तेसे दूर ही रहना चाहिए तभी शान्ति बनी रह सकेगी तो उनकी पद-प्रतिष्ठापर कोई आँच न आती। और पण्डितजीका कहना है कि शान्ति बनाये रखने के लिए वे उतने ही चिन्तित हैं जितने कि स्वयं गवर्नर महोदय। अपने सभी भाषणोंमें पण्डितजीने शान्तिकी आवश्यकतापर जोर दिया है। परन्तु सरकार तो जनताकी इच्छाकी इतनी उपेक्षा करती है कि इस शिष्ट व्यवहारकी बात सोच तक नहीं सकी। उसका ख्याल था कि मालवीयजी और डाक्टर मुंजे इस हुक्मको चुपचाप मान लेंगे। सरकारने यही माना था कि असहयोग तो मर चुका है, सविनय अवज्ञा उससे भी पहले मर चुकी है; और बारडोलीमें उसे पूरी तरह दफनाया भी जा चुका है, इसलिए सविनय अवज्ञाके सम्बन्धमें कांग्रेसके प्रस्ताव कोरी धमकियोंके सिवा और कुछ नहीं हैं। बंगाल सरकार अब अपनी भूल समझ गई । पण्डितजीका पत्र आत्मसंयमके