चुने जिसके साथ वह अपने नये जीवनका दायित्व उठा सकना सम्भव समझता है। किन्तु संस्कार और व्यवहारकी दृष्टिसे विवाहित होते ही यह सम्बन्ध केवल दो व्यक्तियोंका सम्बन्ध ही नहीं रह जाता, सभी क्षेत्रोंमें इसके इतने दूरगामी और व्यापक परिणाम होने लगते हैं कि उनका सहज ही अनुमान नहीं लगाया जा सकता। अराजकतावादी हमारे आजके इस व्यक्तिवादी युगमें, सम्भव है वे दोनों भी इन परिणामोंको न देख पायें, किन्तु वे होते महत्त्वपूर्ण हैं। उनका यह महत्त्व इस बातसे प्रमाणित होता है कि ज्योंही पारिवारिक स्थिरताको कोई भी धक्का लगा और ज्यों हो पति-पत्नी-सम्बन्धके निश्चित लाभप्रद संयमका स्थान भोगलिप्साके मनमौजीपनने लिया कि सारा समाज जबरदस्त परेशानीका अनुभव करने लगता है। परिवर्तन विकासका सामान्य नियम है और समाजकी अन्य संस्थाओंकी भाँति विवाह-संस्थामें भी परिवर्तन हुए बिना नहीं रह सकते, किन्तु जो मनुष्य परिणामोंकी इस परस्पर गुंथी हुई श्रृंखलाको जानता है वह अवश्यम्भावी परिवर्तनोंसे विचलित नहीं होता; क्योंकि वह यह भी जानता है कि स्वाभाविक परिवर्तन तो वैवाहिक सम्बन्धोंको और भी घनिष्ठ और अन्तरंग बनानेमें ही योग देंगे। आजकल विवाह-सम्बन्धके अविच्छेद्य बने रहनेके नियमकी कटु आलोचना की जा रही है और कहा जा रहा है कि दोनोंकी रजामन्दी होनेपर भी सम्बन्ध विच्छेदकी अनुमतिका न होना तो सर्वथा अनुचित है। किन्तु इस आलोचनाका फल इसके सिवा और कुछ नहीं हो सकता कि अविच्छेद्यताके जिस नियमका इतना विरोध किया जा रहा है लोग उसके सामाजिक महत्त्वको और भी स्पष्ट रूपसे समझ जायें। जैसे-जैसे समय बीतेगा यह अधिकाधिक स्पष्ट होता जायेगा कि पिछले जमाने में जब लोग इस नियमका सामाजिक महत्त्व पूरी तरह नहीं समझा सके थे तब यह केवल धार्मिक अनुशासन बनाये रखनेकी एक व्यवस्था-भर था, लेकिन अब यह नित्य प्रति एक ऐसे सिद्धान्तके रूपमें निखरता जा रहा है जो व्यक्तिके लिए उतना ही हितकारी है जितना कि समूचे समाजके लिए।
विवाहकी अविच्छेद्यताका नियम केवल शोभनीयताके विचारसे रूढ़ नहीं हुआ है; प्रत्युत वह समाजके व्यक्तिगत और समुदायगत बड़े ही सुकुमार जीवन-तन्तुओंके साथ जुड़ा हुआ है, और जब लोग विकास की बात करते हैं, तो यह प्रश्न स्वाभाविक ही है कि हम सभी मानव जातिकी जिस अनिश्चित प्रगतिके अभिलाषी हैं उसकी शर्तें क्या हैं। दायित्वकी भावनामें वृद्धि, स्वेच्छा से अपनाये गये आत्मिक संयम और सदाचारकी दिशामें व्यक्तिका प्रशिक्षण, सहन-शीलता और उदारताका विकास, स्वार्थभावनापर अंकुश, जिन बातोंके कारण सम्बन्धविच्छेद होता है और जिनके फलस्वरूप चार दिनका आनन्द सूझता है, समाजके जगतमें उनके विरुद्ध दृढ़ता बनाये रखना— ये सब मनुष्यके आन्तरिक