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३०९. भूल सुधार

'यंग इंडिया' की छपाईमें भूलें और गलतियाँ रह जाती हैं, यह मैं जानता हूँ। साथी कार्यकर्ताओंकी खर्चम बचतकी इच्छाको ध्यानमें रखते हुए भूलोंसे बचने का पूरा प्रयत्न किया जाता है; किन्तु मुझे यह कहते हुए दुःख होता है कि पिछले हफ्ते 'थोपा हुआ वैधव्य' लेखमें दो गम्भीर भूलें रह गई हैं।[१]

पाँचवें अनुच्छेदमें 'बट वन डिड नॉट क्वरैल' में 'डिड' की जगह 'नीड' शब्द होना चाहिए। पहले स्तम्भके अन्तिम अनुच्छेदकी नीचेसे पाँचवीं पंक्तिमें 'वी वुड रिजॉर्ट टु फोर्स इन रिलीजन' में 'रिजॉर्ट' की जगह 'रिजेंट' शब्द होना चाहिए। मैं जानता हूँ कि कितने ही पाठक अपने अंकोंकी फाइलें बनाकर रखते हैं और 'यंग इंडिया' के लेखोंको चावसे पढ़ते हैं। यही कारण है कि मैंने यहाँ इन भूलोंका उल्लेख कर दिया है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १२-८-१९२६

३१०. अनीतिकी राहपर—७

आजीवन ब्रह्मचर्यके अध्यायके पश्चात् विवाहितोंके कर्त्तव्य और विवाहोंकी अविच्छेद्यतासे सम्बन्धित अध्याय हैं। लेखक कहता है कि आजीवन ब्रह्मचर्य उच्चतम अवस्था है; किन्तु यह जिस विशाल जनसमुदायके लिए सम्भव नहीं है, उसके लिए विवाहको एक कर्त्तव्य ही मानना चाहिए। उसने सिद्ध किया है कि विवाहके उद्देश्य और उसकी मर्यादाओंको ठीक-ठीक समझ लेनेपर गर्भ निरोधके कृत्रिम साधनोंका समर्थन कदापि नहीं किया जा सकता। अमर्यादित आचरण होनेका कारण गलत ढंगका नैतिक शिक्षण ही है। विवाहकी खिल्ली उड़ानेवाले कुछ 'प्रगतिशील' लेखकोंकी रायका विवेचन करनेके बाद, लेखक कहता है:

भावी पीढ़ियोंके लिए यह सौभाग्य की बात है कि इन झूठे नीतिवादियों और नैतिक भावनासे ही लेखकोंका, जो कभी-कभी तो वास्तविक साहित्यिक भावनासे भी नितान्त शून्य होते हैं, मत हमारे युगके मनोविज्ञान और समाज-विज्ञानके सच्चे पण्डितोंके मतसे बिलकुल मेल नहीं खाता। अखबारों, उपन्यासों और रंगमंचके शोरगुलकी यह दुनिया उस दूसरी दुनियासे, जिनमें विचारका विकास किया जाता है और जिसमें हमारे मनोवैज्ञानिक और सामाजिक जीवनके रहस्यमय तत्त्वोंका बारीकीसे अध्ययन किया जाता है, सर्वथा भिन्न है।

  1. यहां मूल अंग्रेजी लेखकी अशुद्धियोंका हवाला दिया गया है। हिन्दी अनुवाद इनको शुद्ध करके ही किया गया है। देखिए "थोपा हुआ वैधव्य", ५-८-१९१६ ।