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सात समुद्र-पारका न्याय

आप इसे कर्जकी तरह माँगते हैं। आपने जो मकान बनवाया है आप उसीपर पैसा उधार क्यों नहीं ले लेते? मुझे तो यही रास्ता सबसे सीधा लगता है।

डा० चन्दूलाल मणिलाल देसाई

द्वारा मैससं वकील ब्रदर्स
मणिभवन, लेबर्नम रोड

गामदेवी, बम्बई

गुजराती प्रति (एस० एन० १२२४६) की माइक्रोफिल्मसे।

३०८. सात समुद्र-पारका न्याय

यदि विजित जातिके मनको न जीता जाये, यदि विजित लोग अपनी दासताकी शृंखलाको प्यार न करने लगें और विजेताओंको अपना उपकारी न समझने लगें, तो इस सांस्कृतिक विजयके बिना केवल शस्त्रोंके बलपर पाई हुई विजयका कोई मूल्य नहीं होता। भारतवर्षके भिन्न-भिन्न स्थानोंपर खड़े किले, अंग्रेजोंकी शक्तिकी हमें बराबर याद दिलाते रहते हैं। सर हरिसिंह गौड़के इस बहुत ही नम्र प्रस्ताव— कि सबसे बड़ा न्यायालय दिल्लीमें ही लाकर रखा जाये— के सम्बन्धमें हमारे प्रमुख वकीलोंकी जो सम्मति 'इंडियन डेली मेल' में छपी है, अगर उसीको हम अपने शिक्षितोंके दिमागका नमूना मान लें, तो कहना पड़ेगा कि अंग्रेजी राज्यकी ज्यादा मजबूत बुनियाद इन बड़े-बड़े किलोंपर नहीं, बल्कि हमारे शिक्षित पुरुषोंके दिमागोंपर, उसने जो यह चुपचाप विजय पाई है उसपर ही है। इन मशहूर वकीलोंका खयाल है कि अभी इसका समय नहीं है, अर्थात् उनके मतानुसार यहाँसे छः हजार मील दूरकी प्रिवी कौंसिलके फैसलोंपर लोगोंकी अधिक श्रद्धा होगी और हमें न्याय वहाँ अधिक निष्पक्षतासे मिल सकेगा। मैं यह कहनेका साहस करता हूँ कि इस आश्चर्यजनक सम्मतिका आधार यथार्थपर नहीं है। परन्तु दूरके ढोल सुहावने होते हैं। प्रिवी कौंसिलवाले भी आखिर मनुष्य ही हैं। राजनीतिक पक्षपातकी गन्ध उनमें भी पाई गई है। हमारी रीति-रस्मोंके मुकदमोंके सम्बन्धमें उनके फैसले प्रायः सत्यकी तोड़-मरोड़ ही होते हैं। इसका कारण उनकी दूषित मनोवृत्ति नहीं है; परन्तु नश्वर मनुष्य सब-कुछ तो नहीं जान सकता। कानूनका कितना ही अधिक ज्ञान क्यों न हो, परन्तु यदि मुकामी रीति-रिवाजसे जिन्हें वाकफियत न हो, उन वकीलोंकी बनिस्बत एक कम प्रशिक्षित वकील भी जिसे मुकामी रीति-रिवाजोंसे पूरी वाकफियत हो, रीति-रस्म सम्बन्धी मुकदमोंमें पेश किये गये साक्ष्यको कहीं अच्छे ढंगसे समझ और प्रस्तुत कर सकेगा।

ये प्रमुख वकील यह भी कहते हैं कि अन्तिम अपीलका न्यायालय दिल्लीमें लाकर रख देनेसे ही खर्चमें कुछ कमी नहीं होगी। यदि उनका यह मतलब है कि घनी इंग्लैंडमें जो फीस ली जाती है, वही गरीब हिन्दुस्तानमें भी ली जायेगी तो उनकी देश-भक्तिके लिए यह कुछ शोभाकी बात नहीं। एक स्काटलैंडवासी मित्रने मुझसे कहा