आपने उनको क्या उत्तर दिया। कलकत्तेके दंगोंका जो रहस्य आप बताते हैं वह पढ़कर मुझको दुःख और आश्चर्य होता है। मालवीयजीके खतसे में तो बहुत खुश हुआ, और उनके पश्चात् जो कुछ हुआ है वह भी बहुत ही अच्छा हुआ है। इस बारेमें लिखने का मैंने निश्चय कर ही लिया है।
सब्जी मंडी
मूल पत्र (एस० एन० १२२४५) की फोटो-नकलसे।
३०६. पत्र: जमनालाल बजाजको
आश्रम
साबरमती
मंगलवार, श्रावण सुदी २, १० अगस्त, १९२६
तुम्हारा पत्र मिला। घनश्यामदासका भी पत्र मिला। तुम्हारा तार मिल गया था। तुम्हारा सीकर जाना ठीक ही हुआ। अब वहाँसे यहाँ आनेका जो निश्चय किया है, उसपर अवश्य दृढ़ रहना । घनश्यामदास लिखते हैं कि तुम्हारा स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है। मुझे यह पढ़कर चिन्ता हो गई है।
बाकी मिलनेपर।
बापू के आशीर्वाद
गुजराती पत्र (जी० एन० २८७२) की फोटो-नकलसे।
३०७. पत्र: चन्द्रलाल देसाईको
आश्रम
साबरमती
बुधवार, श्रावण सुदी ३, ११ अगस्त, १९२६
आपका पत्र मिला। में आपकी दिक्कत समझ सकता हूँ। मुझे पत्र लिखते हुए आपको शरमानेकी कोई बात नहीं है। किन्तु मैं आपको पैसा कहाँसे भेजूं? मेरे पास पैसा नहीं है, यह आप मानेंगे ही और में आपको यह भी विश्वास कराना चाहता हूँ कि पैसा इकट्ठा करनेकी मेरी शक्ति बहुत सीमित है। यह में समझ गया हूँ कि